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________________ दानी और बुद्धिवंत, ऐसा तो वर जोस्यां ॥ पिताजी सुखे रहसु, सामायिक पडिक्कमणो करस्यूँ ।। सेवा घणी करसुं, संघ में सुयश लेसुं ॥ बहुत दायजो पहुँचा देशां, धन की कमी नहीं राखां ॥ सूत्र मांहे चाल्यो, एक सौ चौरानब्वे बोल को दायजो॥ इन वक्त में लोभी, थोड़े के लिए दुःख देवे॥ ऐसी कुरीतां ने त्यागो, जो देवे सो प्रेम से लीजो ॥ विवाह प्रारम्भ होने के बाद बोलने का गीत ॥ विनायक ॥ (तर्ज- गढ़ रण के भवर सुं आवो विनायक ।) ये तो विचरत-विवरत शहर पधारया, अतारया ओ हरिया बाग में जी॥ ऊँचे तो पाट गौतम विराजिया, वर्धमान का शिण्य ओ जी ॥ भवि जीवाँ रे सुख कारणे जी, धर्मोपदेश फुरमावि-याजी ॥ पहलो तो वासो वसियो विनायक, ऋद्धि-सिद्धि रा भण्डार ओ जी ॥ दूजो तो वासो वसियो विनायक, लब्धि तणा भण्डार ओ जी ॥तीजो तो वासो वसियो विनायक, अन्न-धन रा भण्डार ओ जी ॥ चौथो वासो वसियो विनायक, बद्धि तणा दातार ओ जी ॥ पाँचमो वासो वसियो विनायक, जान तणा दातार ओ जी ॥ बाँसडलिया
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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