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________________ रत्नांरी राशि तेरहवांसरे, अग्नि शिखा बहु तेज । सिद्धारथ राजा ने पूछतासरे, अर्थ दियो फरमायजी ॥४॥ ॥ बड़ा सपना ।। (तर्ज : सोमा रूपा रा दोव ओवरा चन्दन जडिया किवाड, उठे पोढ़या है बनी रा दादासा) अगर चन्दन का जी ओवरा ओ जी पाना फूलारी पटसाल सपना लाद्याजी ढलती रात काटेर॥ ऊँची सी मेडी ढल रहीजी, तो दिवलो बले मझार, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥१॥ जठे नाभि राजा पोढियाजी, ओ रानी जाय जगाय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥२॥ पोढया जागो ओ नाभि राजाजी, ओ जी सपना रो अर्थ बताय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥३॥ पहले सपने जी गयवर देखियाजी, ओ जी राज दरबार रे मांय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥४॥ दूजे सपनेजी वृषभ देखियाजी, ओ जी गाय गवाडिया रे मांय, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥५॥ तीजे सपना में सिंहज देखियाजी ओ जी देख्या है साधु मुनिराज, सपना लाद्याजी ढलती रात का ॥६॥ चौथे सपने में लक्ष्मी देवताजी, ओ जी अन्न-धन भरया है भण्डार, सपना लाद्या जी ढलती रात का ॥७॥पांचवें
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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