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________________ ॥ वच्छ राजा की दूसरी ढाल ॥ (तर्ज--उठो माता नवलादेवीजी, सजो सिनंगार तो।) उठो माता नवलादेवी जी सजो सिनगारो तो पदमा ने दीनी मोटा रायने जी, बेनड ने दीनी मोटा राय ने जी ॥१॥ सुन-सुन रे जाया पूत सपूता तो विद्याधर री कवरी क्यू दीदी मानवी जी। धीवडली ओ क्यूं दीदी मोटा रावने जी ॥२॥ काढ़ कटारी ने माल ली धीवतो पूतडली क्यों जायी ओ माहरा कूखमें जी ॥३॥ सुनो-सुनो ए माहरी नगरी री नारियाँ थे तो कोई मत जीनजो ए धीवडजी ॥४॥थे हो माजी सा माहरा हिरणी राजा रा जायी तो पाछे पो संभालो थारा बापरो जी ॥५॥ जितरे ओ नवलादेवीजी माथोजी धोयो तो मातीडा सुं मांग भरावियाजी॥६॥चोखा कुंकरा रानी तिलक काढ़िया तो नेणां ओ काजल रेकरो जी॥७॥ जितरे जो नवलादेवी जी सजिया सिणंगारो तो बड़बेरो बंधावण माजी सा सांचरियाजी ॥८॥ जितरे वच्छराजाजी बडबेरोजी बांधीयो तो सरप पकडने गला में गालियो जी ॥९॥ जितरे ओ वच्छ राजाजी गुणिया नवकार तो सरप फूलारी माला होय गई जी ॥१०॥ जितरे ओ वच्छ राजाजी तोरण बांधियो तो सासुजी 52
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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