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________________ वासजी ॥५॥ शोरियापुर में जनमिया, गिरनार में निर्वाणजी । कुंकु भरणीजी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥६॥ हथनी चालीजों मलकती, बणारसी नगरी रे मांयजी। मैं थाने पूछू पार्श्वनाथजी, कठे थाने रेवन रो वासजी ॥७॥ बणारस नगरी में जनमिया, समेतशिखर में निर्वाणजी। कुंकु भरणीजी वाटकी, केसर भरणी जी बाटकी ॥८॥ हथनी चालीजी मलकती, कुण्डलपुर रे मांय जी, मैं थाने पूर्वी महावीरमी कठे थाने रेवन रो वासजी ॥९॥ कुण्डलपुर में जनमिया, पावापुरी में निर्वाणजी। कुंकु भरणी जी बाटकी, केसर भरणीजी बाटकी ॥१०॥ ॥ तारो । (तर्ज : प्रभातिया रो तारो आंगण मोर मोती चुगेजी ) प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी । जठे आदिनाथ जनमिया नाभि राजा रे बधावना जी। ये तो केवल पाया दुनिया में धर्म प्रकाशियाजी। अष्ठापद ऊपर आदिनाथजी मोक्ष सिधावियाजी ॥ प्रभातिया रो तारो आंगण हंस मोती चुगेजी । जठे शांतिनाथजी जनमिया विश्वसेन राजारे बधावनाजी ये तो केवल पाया दुनियाँ में शान्ति वरतावियाजी ।
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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