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________________ ठाला बैठा मानवियों ने, ऊंदा काम सूजे रे। कामरा करता ज्यां ने लोग बुझे रे ॥२॥ काठा गाबा पेरे ज्यां रे, घर में लाभ होवे रे । जीणा कपड़ा पेरंता तो पूंजी खोवे रे ॥३॥ गायां रे चरबी री पण जिण रे मांय लागे रे । पाप रो तो लेखो जिण रो, होसी आगे रे ॥४॥ सात महीना करसा सारा बैठा निकम्मा रेवे रे । साठ क्रोड रो घाटो वरसा वरसी सहवे रे ॥५॥ धीरज धारो देश सुधारो, अंगरेजी ने धारो रे । बालो लागे अरटियो आँखों रे तारा रे ॥६॥ ॥ चोखी रीतां ॥ (तर्ज-लाल केश्या थारे मारे कदरी परीत रे ।) पिऊजी मारा चोखी-चोखी रीतां रो परचार रे, वेगो करोनी भारत देश में ॥टेर। पिऊजी मारा छोटा-छोटा टाबरां रा विवाह रे, किकर करे है मायत हाथ सुं ॥१॥ पिऊजी मारा काची-काची कूपलियाँ ने तोडतां, फल पावण री आशा क्यों करे ॥२॥ पिऊजी मारा हंसे-हंसे सब संसार रे, मानो परणाया ठूला दलियो॥३॥ पिऊजी मारा करे करे पोतां री आश रे । काचा वीर्य सुं काई काम है ॥४॥ पिऊजी मारा बूढा 199
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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