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________________ मारा साहबजी ||२७|| एक सामायिक नित करो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी सुघर जावेला जमार मारा साहबजी ||२८|| ओ शिक्षण दिल धार लो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । सुधर जावेला जमार मारा साहबजी ||२९|| शुभ गीतां रा पुस्तक बाचजो मारा प्रीतमजी, मारा प्रीतमजी । सायरवरजी देवे उपदेश मारा साहबजी ॥ ३० ॥ ॥ बहन भाई को समझाती है || ( तर्ज - छोटी मोटी सुइयों रे, जाली का मेरा ) छोटे मोटे भाइयो रे सुनो ये मेरी अर्ज को ॥टेर || एक दुःख पाया तुमने, फैशन के राज में, हाँ फैशन के राज में । आमदनी से खरचा बढ़ाया सर पर चढाया कर्ज को ॥ १ ॥ एक दुःख पाया तुमने, फूट के राज हां फूट के राज में । आपस में कर तकरार, कराया अपने को || २ || एक दुःख पाया तुमने अंधी श्रद्धा के राज में । जन्तर मन्तर कराय, बढाया अपने सरज को ॥ ३॥ एक दुःख पाया तुमने, जुए के राज में धोखे से गये ललचाय, भुलाया अपने फर्ज को ||४|| एक दुःख पाया तुमने, पंचों के राज में । रूढी के जाल फँसाय, करावे अपनी राज को ||५|| अब सुख पाओ शुभ, गीतों के राज में । हराकर श्रीनाथ, सुनाओ मोठी तर्ज को ॥६॥ 1 196
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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