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________________ आवक सुं जावक हो ज्यादा, घाटो नीव जमावे । पैसा हित पल्ला खेंचीजे, हाट हवेली, जावे रे ॥३॥ जिण मौसम में निपजे चीजां, उण मौसम में लेणी। लारा सुं लेवण में पड़सी, दणी कीमत देनी रे ॥४॥ बँदां-बँदां ताल भरीजे, कण-कण करता कोठी । । पंसे-पैसे पूंजी होवे, बात समझ आ मोटी रे ॥५॥ समझण नार समझ कर खरचे, वरचे चोखी लोग। . जगमें यश फैलायजे धीरज, सभी तरह से योग रे ॥ ६ ॥ | बधावा ।। . (तकं-कोरी तो कुडली ओ राज) मंगल गीतां रो आज गावो बधावो । गावो-गावो बाबा सा री पोल रंग रसिया राज गावो बधावो ॥ ।। टेर ।। पहलो बधावो राज विद्या रो आयो, आयोआयो गुरांसा रे द्वार गुण रसिया राज गावो बधावो ॥१॥ दूजो बधाओ राज ज्ञान रो आयो, आयो-आयो ज्ञानीजी रे द्वार चित्त रसिया राज गावो बधावो ॥२॥ तीजो बधाओ राज धर्म रो आयो, आयो-आयो साधजी रे द्वार दिल रसिया राज गावो बधाओ ॥३॥ चौथो बधावो राज विनय रो आयो, आयो-आयो सुसराजी रे द्वार सुख रसिया राज गावो बधावो ॥४॥ पंचम 177
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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