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________________ || बीन्द बीन्दनी को बधाने का गीत || (तर्ज-- टोडरमल चालो बधावने ) बना परण ने बनी साथै लायो, माताजी ने हर्ष घणो हुवोजी || मोतियां री बाली ने हाथ में कलश, लेने बधावन आवियाजी ॥ तिलक जो काढ़या ने चावल चेडवा, आरतडी तो करे घणा प्रेम सं जी ॥ मंगल गावे न बाजाजी बाजे तो, कुल बहु ओ वंश बढ़ावसीजी || पिताजी पुण्यवंता ने माताजी पुन्यवंती कँवर पुन्यवंतो परण पत्रारियाजी ॥ बहन बहनोई मारग रोके, आधी पांति माने देवोजी || पांति थाने देसां ने प्रेम बढ़ातां, ननन्दल ने बेण ज्यूं राखतां जी ॥ || थाली सरकाने का गीत । (तज -- ज्यूँ कडकासी ने ज्यूँ बड़कासो कुल बहु ) || होमो झूठलीजी ॥! कँवर परणन ने घर मा आया, हाथ में तलवार लीनीजी । सात तो थाली मारग रखदी कँवर तो आगे सरकावेजी । लारे कुलबहु विनयवंती धीरे-धीरे उठावे जी । जतना सुं लेने सासुजी रे खोला माहें रखतीजी । आपको घर को काम में करसुं, आप कदी नहीं करसो जी । शांति में रयजो शुभ आशीर्वाद दीजो, विनय की परीक्षा बतायीजी । 160
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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