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________________ म़ारा काकोसा देखें, किसविध ओहूँ माता चुन्दडी ॥ थारा बाबोसा ए बाई लगन लिखावे, काकोसा चुड़लों मोलावसी, वीरोसा ए बाई चूँदडियां मोलवे, मामोसा मायरो पेरावसी ॥ बहनोई ए बाई बन्दोली कडावे, बेनड आरती करावसी || आज्ञा तो पालू माता चून्दड ओढ, अमर सवागण दिरावजो || ॐ वीरा ( तर्ज - जीरा रिमझिमतुं वेगा आवजो । ) स्वारथ का बहन ने भाई, बिन स्वारथ नही कोई जी । वीरा रिम झिमसुं वेगा आयजो ॥१॥ कर्म योग से बहन निर्धन थाव, धनवंतो वीरो नहीं आवेजी || वीरा रिमझिमसुं वेगा आवजो || २ || में बहन कदी नहीं जानूँ, इन विध वचन सुनावे जी || वीरा० ॥ ३ ॥ वाने चून्दड़ नहीं ओढावे, नहीं तिलक जाय करावे जो ॥ वीरा० ॥ ४ ॥ भाई निर्धन कभी हो जावे, तब बहन द्वारा नहीं जावेजी ॥ वीरा०||५|| नहीं जीरा घर बुलावे, नहीं तिलक भाई रे करती जी || वीरा० ॥ ६ ॥ धर्म का भाई बनावे, और धन-माल सब लेती जी || वीरा०७॥ एक माता उदर थी जाया, किम प्रेम भाव मिटायाजी || वीरा० ॥८॥ दाम की प्रीति करती पन आत्मा की 100
SR No.006295
Book TitleSwarna Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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