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________________ (८३) तब थाय तो ॥ महा तपना प्रजावी, व्योममें देवताकी छाइ छात तो ॥शु०॥२०९॥ अहोदानं महादान श्रेष्टए, घणो गम मिली श्रौछावे बोलात तो ।। शुगंधी द्रव्य वृष्टी करी, बारे कोड दिनार ढग लगात तो ॥ बहु देव देवी नीचे श्राइ, मुनी राजने पंच अंग नमात तो ॥ रायनी परसंस्था करे, मुंडे २ नूपना गुण गात तो ॥ शु० ॥ ॥ २१० ॥ राज योग्य वस्त्र भूषण, बहू मोल्या राजाने पहरात तो ॥ देवधुंदबी बाजे गगनमें, तेहनो नाँद नगरमें सुणात तो ॥ लोक सुणी अ. श्चर्य हुवां, देखणको मनमें उमंगात तो ॥ अहो यह दान कुणं दीयो, गम २ दोडी ग्राम बाहिर जात तो ॥शु० ॥ २११॥ गम्म जम्यों लोकां तणो, पाग लागीने बीजाने लगात तो ॥ नयर १ आकाश. २ सोनेया. ३ शब्द.
SR No.006294
Book TitleBhimsen Harisen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year1909
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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