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________________ उदयन और वासवदत्ता सैनिकों ने तलवारें खींची- मुझे यों बन्दी बनाकर | वत्सराज ! आप भागने कहाँ ले जाना चाहते हो? की चेष्टा मत कीजिए। आप बन्दी नहीं, अवन्तीराज के मेहमान हैं। MONALESEy A LLANTOL (अवन्ती राज ?? सैनिक उदयन को हाथी में बैठाकर अवन्ती ले आये और चण्डप्रद्योत के सामने प्रस्तुत किया उदयन ने कहा वत्स ! क्षमा करना, मौसाजी, मैंने तो मैंने तुम्हें बुलाया था। आपको पिता तुल्य तुम नहीं आये। इसलिए समझा है। मेरे साथ । ऐसा करना पड़ा। ऐसा छल क्यों किया? वत्स ! जब आज्ञा से काम नहीं बनते । लेकिन क्यों? उदयन ! मेरी पुत्री है वासवदत्ता। बड़ी हठीली देखा तभी मैंने यह छल किया है। किसलिए? | और नाजुक मिजाज की है। दुर्भाग्य से वह काणी# है। उसने गंधर्व विद्या सीखने का हठ पकड़ लिया है और इस विद्या का ज्ञाता तुमसे श्रेष्ठ अन्य कोई भरतखण्ड में नहीं है। (आपकी पुत्री काणी है? # कुछ ग्रंथों में उसे अँधी बताया है।
SR No.006280
Book TitleUdayan Vasavdatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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