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________________ उज्जयिनी-बारह वर्ष पश्चात् आज वासवदत्ता सत्रहवें वर्ष में प्रवेश कर रही थी। उसके जन्मदिन मनाने की जोर शोर से तैयारियां चल रही थीं। प्रातःकाल ही वह सजधजकर अपनी सखि कंचनमाला के साथ पिताश्री के चरण-वन्दना करने आई। उदयन और वासवदत्ता : बेटी ! मैं कितना भाग्यशाली हूँ, तुझे देखकर एक साथ पुत्र और पुत्री दोनों का सुख अनुभव करता हूँ। काय में पिताजी ! मेरा भी तो सौभाग्य जो आपने मुझे पिता और माता दोनों का अपार प्यार दिया है। पुत्री ! आज जन्मदिन पर तुझे कुछ देना चाहता हूँ, जो तेरी इच्छा हो सो माँग ले। पिताजी ! मैं संसार की तो आज ही हम कर्णाटक सर्वश्रेष्ठ गंधर्व विद्या के सर्वश्रेष्ठ वीणावादक सीखना चाहती हूँ। आचार्य संदीपन को वीणा-वादन मुझे सबसे निमंत्रण भेजते हैं। प्रिय लगता है। पिताश्री ! आचार्य संदीपन की शिष्या वसंतसेना ही तो मेरी कला शिक्षिका है। अच्छा, सुना तो हमने वाह ! फिर तो हमारी राजकुमारी साक्षात् । वीणावादिनी सरस्वती बन जायेगी। पिताश्री ! आचार्या कहती हैं, - वत्सराज उदयन आज भरतखण्ड में सर्वश्रेष्ठ वीणावादक हैं। वे साक्षात् गंधर्वराज तुम्बल का अवतार हैं। CODIA # रानी अंगारवती की पुत्री थी वासवदत्ता। जब वह तीन वर्ष की थी। तभी माता साध्वी बन गई थी। राजा चण्डप्रद्योत ने ही उसे माँ का प्यार दुलार देकर पाला। वह रूप में अप्सरा जैसी लगती थी। तो बुद्धि और चतुरता में सरस्वती। काव्य नृत्य गायन अनेक विद्याओं में प्रवीण थी वह।
SR No.006280
Book TitleUdayan Vasavdatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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