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________________ पुरोवाक् मैं आठ-नौ वर्ष का था। तब मैंने अपनी संसार पक्षीया मां से चौबीसी ओर आराधना के गीत सुने। वे मुझे बहुत प्रिय लगे। मुझे नहीं पता था -- गीतकार कौन हैं और इसका भी पता नहीं था-- किस भाषा में लिखे हुए हैं। ग्रंथ का ऐतिहासिक और काव्यात्मक विश्रेषण हमारी बुद्धि का कार्य है किंतु अच्छा लगना रचनाकार की शब्द-रचना में सन्निहित आस्था और रचना शिल्प का प्रभाव है। अब मैं जानता हूं--चौबीसी के रचनाकार हैं जयाचार्य और उसकी भाषा है-मारवाड़ी या राजस्थानी। ___ काव्य, लेख, निबंध, और किसी ग्रंथ के लिए भाषा का भी बहुत मूल्य है। राजस्थानी में अभिव्यक्ति की विशिष्ट क्षमता है। उसका मूल स्रोत है प्राकृत। उसमें जो सहज मिठास है, उसका कारण है प्राकृत का वह सिद्ध वाक्य-- सुहमुहोच्चारण-उच्चारण में मुख को कष्ट न हो इसलिए शब्द में परिवर्तन करना हो तो किया जा सकता है। इस उच्चारण की कोमलता ने शब्दों को तराशा है और उस तराश ने उनमें एक उज्ज्वल आभा पैदा की है। ____ आचार्य भिक्षु जोधपुर राज्य के कांठा प्रदेश में जनमे। उनकी बोली और भाषा में ठेठ मारवाड़ी शब्दों की एक लंबी श्रृंखला है। उन्होंने मेवाड़, हाड़ौती, थळी आदि अनेक प्रदेशों में विहार किया फिर भी उनकी रचनाओं में मारवाड़ी के पुराने शब्दों का एक भण्डार है। उन्होंने गद्य में लिखा और पद्य भी लिखे। कुल मिलाकर अड़तीस हजार श्लोक मान लिखा। अनेक विषय, अनेक रागिनियां, अनेक प्रयोग उनके सहज कवि अथवा रचनाकार होने के स्वयंभू साक्ष्य हैं। उनकी सृजनात्मक और रचनात्मक चेतना ने तेरापंथ धर्मसंघ में सृजनात्मक और रचनात्मक शक्ति को जन्म दिया। परंपरा उत्तरोत्तर विकसित होती गई। जयाचार्य राजस्थानी के सुप्रसिद्ध रचनाकार हैं। आचार्य भिक्षु के चतुर्थ आसन पर विराजमान होकर उन्होंने आचार्य भिक्षु की परम्परा को यशस्वी और गतिशील बनाया। राजस्थानी को उनका अवदान इतिहास प्रसिद्ध हैं। भगवती सूत्र
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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