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________________ सात बालक के कोमल हृदय में वैराग्य का बीज-वपन हो गया। उस समय तेरापंथ धर्मसंघ के मुनिश्री छबीलजी स्वामी का संपर्क हुआ, वैराग्य के बीजों को सिंचन मिल गया। जब तेरापंथ के अष्टमाचार्य कालगणी वहां समवसृत हुए तब वे बीज अंकुरित हो गए और बालक नत्थमल ने तेरह वर्ष की लघु अवस्था में पाली नगर में प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। बालक की बुद्धि तीव्र थी, समझने की क्षमता थी। बालमुनि ने कुछ ही वर्षों में व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि का गंभीर अध्ययन कर लिया। अवस्था के साथ-साथ अध्ययन का क्रम भी बढता गया। आपने जैनागमों की टीकाओं का पारायण किया और सैद्धांतिक निष्णातता प्राप्त कर ली। प्रारम्भ से ही आप कविहृदय थे । राजस्थानी अथवा संस्कृत में काव्य-रचना करने में आपकी अनिरुद्ध गति थी। संस्कृत भाषा के प्रति अत्यधिक रति होने के कारण आपका संस्कृत ज्ञान वृद्धिंगत होता गया और शनैः शनैः आप उसमें निष्णात हो गए। आपकी अनेक संस्कृत रचनाएं हैं, जिनके अध्ययन से आपके भावगांभीर्य, शब्दलालित्य तथा वर्णन कौशल का सहज आभास हो जाता है। मुनिश्री की प्रमुख संस्कृत रचनाएं ये हैंकृति-विवरण रचनास्थल . रचनाकाल विक्रम संवत् १. श्रीकालूकल्याणमन्दिरम् आडसर १९९० दीपावली २. श्रीकालूकल्याणमन्दिरम् तालछापर १९९० दोनों में आचार्य सिद्धसेन कृत कल्याण मृगशिर मन्दिरम् स्तोत्र की पादपूर्ति के रूप में श्रीमद् कालूगणी का गुणोत्कीर्तन । ३. शान्तसुधारस वृत्ति गोगुन्दा १९९४ उपाध्याय श्रीविनयविजयजी द्वारा रचित शान्तसुधारस ग्रंथ की सुबोधिनी टीका । ग्रंथाग्र- . १४०० श्लोक प्रमाण । ४. युक्तिवाद . बलून्दा १९९८ अहिंसा का सूक्ष्म एवं युक्तिपूर्ण विवेचन । ग्रन्थप्रमाण ५०० श्लोक । ५. अन्यापदेश बलून्दा .. २०१० छायावादी पद्धति से चन्द्रमा, फूल, नवनीत आदि को संबोधित कर मानव मात्र को दी गई शिक्षाएं । शिखरिणी छन्द में १०८ श्लोक। १९९८
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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