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________________ ३-४ ५ - १६ १७-१९ २० २१-२२ २३-३६ ३७-९१ मिथ्या प्ररूपणा से भिक्षु की मनःस्थिति । सूर्यास्त का वर्णन । अन्धकार का फैलना । ह्रास और विकास का क्रम । रात्री का वर्णन । ६६-७६ ७७-९० उन्नीस ९२-११० प्रबुद्ध मन से मन को प्रतिबोध । १११-११७ मुनि भिक्षु की कल्याणमार्ग के उद्भावना की प्रतिज्ञा और उसकी फलश्रुति । ११८-१२२ रोगों की भयंकरता और मनुष्यों की मनःस्थिति । १२३-१२६ असातवेदनीय को समभाव से सहने का निर्देश | १२७- १३२ आर्य पुरुष कौन ? १३३ - १३४ सातवां सर्ग शुभ भावना से शीतज्वर का अपनयन । ९१ ९२ - १०० १०१-१०६ शीतज्वर से आक्रांत भिक्षु, उसकी प्रचंडता और भिक्षु की सहनशीलता । १-१६ सूर्योदय का वर्णन । १७- २१ सूर्यकिरणों द्वारा मुनि भिक्षु का चरणस्पर्श और सूर्य का आत्मचिंतन | १०७ १०८-१०९ शीतज्वर के प्रकोप की वास्तविकता, मुनि भिक्षु का उस समय आत्मविलोडन, नारकीय कष्टों की भयंकरता और सत्याभिव्यक्ति की प्रतिज्ञा । २२- २५ महापुरुषों की कार्यपद्धति-- पहले सोचें, फिर करें । २६-६५ : ज्वरमुक्त अवस्था में मुनि भिक्षु का चिन्तन, शास्त्राध्ययन के लिए परम पुरुषार्थ और अन्तर् आलोक की उपलब्धि । राजनगरवासी शंकाशील श्रावकों के समक्ष सत्य का उद्घाटन । श्रावकों द्वारा भिक्षु की मुक्तकंठ से प्रशंसा और उनमें पूर्ण विश्वास का प्रकटीकरण | आग्रही श्रावकों की मनःस्थिति । मुनि भिक्षु द्वारा अपने सहगामी मुनियों को सत्योपलब्धि की अवगति । सहगामी मुनियों द्वारा सत्य मार्ग की उद्भावना में विलम्ब न करने की भिक्षु से प्रार्थना । अवसर की प्रतीक्षा | राजनगर का आठवां सफल चातुर्मास ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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