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________________ संपादकीय . आचार्य भिक्षु तेरापंथ के अधिष्ठाता थे। वे वि. सं. १८०८ में स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्य रघुनाथजी के पास दीक्षित हुए। सैद्धांतिक मतभेद के कारण वे उनसे पृथक् होकर वि. सं. १८१८ में केलवा (मेवाड) में नई दीक्षा ग्रहण की। वे शुद्ध चारित्र-पालन की इच्छा से प्रेरित थे । उनका एकमात्र लक्ष्य था अर्हत् वाणी के आधार पर साधना करना। वे साधना करने लगे। उन्होंने आतापना और तपस्या से अपने आपको भावित किया। उनके चारों ओर अनुयायियों का घेरा जमने लगा। उनके द्वारा अनुसृत मार्ग का नामकरण 'तेरापंथ' हो गया। उनका उद्देश्य नए पंथ की स्थापना करना नहीं था। परन्तु जब नामकरण हो ही गया तब उन्होंने उसे सहजता से स्वीकार कर लिया। __ वे तेरापंथ के प्रथम आचार्य थे। उन्होंने जैन आगम ग्रंथों का मंथन किया। सारभूत तथ्यों के आधार पर तेरापंथ दर्शन को विकसित किया, अनेक गंभीर ग्रंथों का प्रणयन कर जैन दर्शन के विशुद्ध रूप को अभिव्यक्ति दी। उन्होंने लगभग ३६ हजार ग्रंथाग्र परिमाण के राजस्थानी भाषा में गद्यपद्य लिखे। संघर्षमय जीवन के ७२ वर्ष पूरे कर वे सिरियारी में दिवंगत हुए। आज उनका धर्म-परिवार शतशाखी की भांति विस्तृत होकर गतिशील है। काव्यकार उन्हीं की परम्परा के एक मुनि हैं। उन्होंने उनके जीवन-दर्शन को संस्कृत काव्य में निबद्ध कर अपने शिष्यत्व को कृतार्थ किया है। इस महाकाव्य के निर्माण की प्रेरणा आचार्य तुलसी ने दी। इसे शिरोधार्य कर संस्कृत भाषा में निष्णात मुनि नत्थमलजी ने विभिन्न छन्दों में काव्य-रचना कर इस महाकाव्य को तेरापंथ संघ को समर्पित कर दिया। आचार्य भिक्षु के जीवन और तेरापंथ दर्शन पर लिखा गया यह पहला महाकाव्य है। वि. सं. २०४६ योगक्षेम वर्ष का विराट् आयोजन । सैकड़ों साधुसाध्वियों का जैन विश्व भारती, लाडनूं में एकत्र अवस्थान । गणाधिपति तुलसी तथा आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा वर्षभर निरन्तर प्रशिक्षण का उपक्रम । उस समय 'श्रीभिक्षुमहाकाव्यम्' के संपादन की योजना बनी और मुझे निर्देश प्राप्त हुआ कि मैं इस कार्य में संलग्न हो जाऊं। पूरे महाकाव्यं का अनुवाद स्वर्गस्थ मुनिश्री सोहनलालजी (खाटू) तथा मुनि नगराजजी (सरदारशहर) ने कर लिया था। पाली चातुर्मास में मैंने उसे पुनः देखना
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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