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________________ सुबाहुचरियं .१२९ ११. सद्भाग्य के विना संसार में साधुओं के दर्शन नहीं होते । विज्ञजनों ने साधुओं के दर्शन को कल्याणकारक कहा है। .. १२. भगवान् ने तब समागत मनुष्यों को धर्मोपदेश सुनाया। उनके वचन को सुनकर सुबाहुकुमार ने इस प्रकार निवेदन किया१३. मैं माता-पिता की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूं। उसके इस कथन को सुनकर भगवान् ने कहा-तुम विलंब मत करो। १४. सुबाहुकुमार शीघ्र अपने घर गया और माता-पिता को इस प्रकार बोला-भगवान् की वैराग्यमय वाणी को सुनकर मैं प्रवजित होना चाहता हूं। १५. आप शीघ्र दीक्षा की आज्ञा दें, विलम्ब न करें। उसके इस वचन को __ सुनकर माता शोक करती हुई बोली१६. तुम हमारे एक ही पुत्र हो । तुम इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, स्थैर्य, मनाम, रत्नतुल्य, वैश्वासिक और भंडकरंडग समान हो। १७-१८. पुत्र ! हम तुम्हारे वियोग को सहन करने में किंचित् भी समर्थ नहीं हैं। अतः तुम हमारी मृत्यु के पश्चात् अपने कुल में वृद्धि करके भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण करना। हमें कोई भी बाधा नहीं है । माता की इस वाणी को सुनकर सुबाहुकुमार ने इस प्रकार कहा १९. संसार में मनुष्य का शरीर अनित्य है। वह कभी विनाश को प्राप्त हो सकता है। कौन मनुष्य पहले या बाद में मृत्यु को प्राप्त करेगा, कोई नहीं जानता। २०. जीवन की इस अनित्यता को जानकर मुझे शीघ्र दीक्षा की आज्ञा दें। उसके इस वचन को सुनकर माता ने सुबाहुकुमार को पुन: इस प्रकार कहा२१. दादा, परदादा ने जो धन अर्जित किया है उस समस्त धन को तुम भोगो । तत्पश्चात् मुंडित होकर भगवान् के समीप में दीक्षा ग्रहण करो।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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