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________________ दस चरित्र काव्य है। इसका आधार जैन कथाएं हैं। इसके चार सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छंदों में आबद्ध है। इस काव्य की रचना वि. सं. २०३४ जोधपुर में हुई । इसके दो सर्ग गांडीव पत्रिका (जो संस्कृत पत्रिका है और बनारस से प्रकाशित होती है) में प्रकाशित हुए थे। देवदत्ता-यह काव्य जैन आगम 'विवागसुयं' के प्रथम श्रुतस्कंध के नौवें अध्ययन के आधार पर रचित है । इसके पांच सर्ग हैं । प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छंदों में आबद्ध है । इसकी रचना विक्रम संवत् २०३६ लाडनूं में सुबाहुचरियं-यह काव्य जैन आगम "विवागसुयं' के द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन के आधार पर रचित है । इसके तीन सर्ग है। प्रत्येक सर्ग भिन्न-भिन्न छन्दों में आबद्ध है। इसकी रचना वि. सं. २०३९ सरदारशहर में हुई। __इन तीनों काव्यों का हिन्दी अनुवाद स्वयं मैंने ही किया है । प्रत्येक काव्य में समागत कठिन शब्दों का अर्थ तथा हेमचन्दाचार्य कृत प्राकृत व्याकरण के सूत्रों का प्रमाण भी पाद-टिप्पण में दे दिया गया है जिससे विद्यार्थियों का व्याकरण विषयक ज्ञान भी सुदृढ बनें। कहीं-कहीं प्रयुक्त शब्दों के प्रमाण के लिए महाकवि धनपाल विरचित 'पाइयलच्छी नाममाला' का भी उद्धरण दिया गया है । प्राकृत व्याकरण का संकेत चिह्न हैप्रा. व्या.। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ के प्रति मैं किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं, उनकी मंगल सन्निधि, प्रेरणा और मार्गदर्शन मुझे सतत गतिशील बनाये रखता है। ___इन काव्यों के निरीक्षण में मुनिश्री दुलहराजजी तथा डॉ. सत्यरंजन बनर्जी-प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय का मुझे मार्गदर्शन और सहयोग मिला अतः मैं उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूं। डॉ. सत्यरंजन बनर्जी ने मेरी दोनों पुस्तकों ‘पाइयपच्चूसो और पाइयपडिबिम्बो' की भूमिका एक साथ ही लिखी है । अतः उसे दोनों पुस्तकों में दिया गया है। ___इन काव्यों की प्रतिलिपि करने में मुझे मुनि श्रेयांसकुमारजी का सहयोग मिला । अतः उनके प्रति मैं अपनी मंगल भावना व्यक्त करता हूं। मुनि श्री नवरत्नमलजी, सुमेरमलजी 'सुदर्शन', ताराचंदजी, हीरालालजी तथा धर्मरुचिजी का भी मैं आभारी हैं जिनका सहयोग मुझे मिलता रहा। जैन विश्व भारती मुनि विमलकुमार लाडनूं (राज.) ६ अप्रैल, १९९६
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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