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________________ देवदत्ता ८५ १०. उसकी शवयात्रा में अनेक व्यक्तियों ने आकर अपना हार्दिक दुःख प्रकट किया और राजा के सद्गति की मंगल कामना की। ११. समस्त कार्य करके मनुष्य अपने-अपने घर चले गये । राजकुमार पुष्यनंदी दुःखी मन से अपने महल में आया। १२. पिता की मृत्यु के बाद वह राज्य का स्वामी हुआ क्योंकि वह पहले ही युवराज बन गया था। अत: राजा बना । १३. राजा होने पर भी पुष्यनंदी अपने कर्तव्य को नहीं भूला । वह सदा । ___ अपनी माता की सेवा करता और उसमें किंचित् भी स्खलना नहीं होने देता। १४. पति की मृत्यु के बाद पुत्र ही स्त्रियों का रक्षक होता है, अतः वह जागरूकतापूर्वक माता की सेवा करने लगा। १५. वह प्रतिदिन अपनी माता को नमस्कार करता। अभ्यंगन (तेल मालिश) आदि कराकर उसको सुगंधित जल से स्नान कराता और अपने हाथ से उसे स्वादु भोजन करवाता । १६. उसके बाद वह मातृभक्त अपना समस्त कार्य करता था। इस प्रकार प्रसन्नचित्त होकर वह अपना समय बिताने लगा। १७. अपने पति को इस प्रकार सास की सेवा में रत देखकर वह देवदत्ता मन में विचार करने लगी - १८. मेरा पति पुष्यनंदी सदा मातृसेवा में रत रहता है। अतः मुझे उसके साथ कामभोगादि भोगने के लिए समय नहीं मिल पाता। १९. यह मेरे लिए विघ्नरूप है । अतः मुझे इसे शीघ्र ही दूर करना चाहिए । जिससे मुझे पति के साथ कामभोग भोगने के लिए प्रचुर समय मिल जायेगा। २०. इस प्रकार मन में विचार कर उसने उसको मारने की योजना बनाई। कामातुर होकर व्यक्ति क्या-क्या अधम कार्य नहीं करता ? २१. हे काम ! तुमको निश्चित ही धिक्कार है। तुम्हारे वशीभूत व्यक्तियों की बात विचित्र है। वे अपने स्वरूप को भूलकर कुकर्म में प्रवृत्त हो जाते हैं।
SR No.006276
Book TitlePaia Padibimbo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages170
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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