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________________ | 264 कौशाम्बिनाम्नि नगरेऽर्जितपुण्यराशेः, जातं सुजन्म धरणेश्वर मन्दिरे ते । माता विभो तव बभूव शुभा सुसीमा, भक्त्या स्तुतिं जिनपर्तर्भवतो विधास्ये 138 इसमें पद्मप्रभु का परिचय दिया है कि कौशम्बी नगरी में (धरणेश्वर) धाराण राजा की पत्नी सुसीमा के गर्भ से उत्पन्न हुए । इस प्रकार कवि ने जिनोपदेश में अनुष्टुप् और पद्मप्रभस्तवनम् में बसन्ततिलका वृत्त के माध्यम से भावों को अनुरूप गति प्रदान की है। अलङ्कार शास्त्री जी के काव्यों शब्दालङ्कारों एवं अर्थालङ्कारों की बहुरङ्गी छटा विद्यमान है । उनमें अनुप्रास, उपमा, रूपक, विरोधाभास, अतिशयोक्ति, इत्यादि अलङ्कारों का परिपाक हुआ है । अनुप्रास के विविध प्रयोग दृष्टिगोचर होते हैं। छेकानुप्रास - सोऽत्रैव सद्गतिसुखं प्रददातु सर्व ।" अन्त्यानुप्रास - वस्त्रैः शस्त्रैः एवं दीन्भक्तान् । लाटानुप्रास - संसारदुःख हरणाय नमोऽस्तु तस्मै, मोक्षस्य मार्गकरणाय नमोऽस्तु तस्मै । पद्य के दोनों चरणों में पदसाम्य होने से लाटानुप्रास हुआ । इसके पूर्व की पंक्तियों में स्त्र, न, स, द, वर्णों की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलङ्कार आया है 40 जिनोपदेश में भी अनुप्रास अलङ्कार परिलक्षित होता है । उपमा "जिनोपदेश' में उपमा का प्रयोग अत्यल्प है । पद्मप्रभस्तवनम् में उपमा अलङ्कार परिलक्षित होता है - एक उदाहरण प्ररुपित है - यद्वत्प्रफुल्लकमलेन जलस्य शोभा, तद्वत्त्वयाऽपि भुवनस्य विशिष्टशोभा का अर्थात् - जैसे - विकसित कमल के द्वारा जल की शोभा होती है, वैसे ही आप (पद्मप्रभु) संसार की शोभा है । क्योंकि जिस प्रकार कमल जल की सुन्दरता की अभिवृद्धि करता हुआ उससे उपर (निर्लिप्त) है । उसी प्रकार आप भी संसार में रहते हुए भी उससे उपर (निर्लिप्त) हैं - जग में रहते जग से न्यारे । यहाँ पद्मप्रभु एवं कमल उपमेय है, और संसार और जल उपमान है । जिनमें क्रमशः समानता का वर्णन होने से उपमा अलंकार है । पद्मप्रभु संसार में वैसे ही है, जैसे जल में कमल । सन्दे ह यह अलङ्कार जिनोपदेश ग्रन्थ के अनेक पद्यों में प्रयुक्त हुआ है । एक पद्य उदाहरणार्थ दर्शनीय है - द्रवत्यदुद्व पघच्चा, द्रोष्यत्यं शास्तदुच्यते । द्रव्यमित्यथवा वस्तु सद्वाऽन्वयोऽपिना विधिः ॥42
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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