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________________ | 6 भागों में विभक्त है । तत्पश्चात् कलियुग की सर्वोत्तम स्मृति "पराशर स्मृति" का महत्त्व अप्रतिम ही है । धर्मशास्त्र से सम्बद्ध अन्य टीका ग्रन्थ और निबन्ध ग्रन्थ भी लिखे गये इस प्रकार धर्मशास्त्र भी उन्नत अवस्था में रहा है । दर्शन : भारतीय दर्शन शास्त्र का मूलरूप वेदों में सन्निहित है । उपनिषद्, पुराण, आरण्यक आदि ग्रन्थों में भी पर्याप्त दार्शनिक सामग्री प्राप्त होती हैं । भारतीय दर्शन के दो भेद हैं - वैदिक और अवैदिक । वैदिक दर्शन की छ: शाखाएँ हैं - न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त । अवैदिक दर्शन की चार्वाक, बौद्ध और जैन ये तीन शाखाएँ हैं । इसके अतिरिक्त ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, भौतिक विज्ञान, रसायन, वनस्पति, प्राणिशास्त्र, यन्त्र विज्ञान, विमान विज्ञान, भाषा विज्ञान, राजधर्म, नागरिक शास्त्र, कामशास्त्र विषयक साहित्य के सहस्रों ग्रन्थ हमारे ऋषियों, मनीषियों के सुदीर्धकालीन अनुभव और ज्ञान के प्रतीक हैं । ये सभी संस्कृत भाषा में लिखित हमारे विपुल साहित्य को गरिमामण्डित किये हुए हैं । भारत अपनी प्राचीन साहित्य सम्पदा की सम्पन्नता के कारण विश्व का गुरु रहा है। क्योंकि विदेशी विद्वानों ने प्राथमिक शिक्षा भारतीय मनीषियों के सान्निध्य में ही प्राप्त की थी। (ब) लौकिक संस्कृत साहित्य : लौकिक संस्कृत साहित्य के अन्तर्गत महाकाव्य, खण्डकाव्य, गद्यकाव्य, नाटक, चम्पू आदि का विवेचन होता है । रामायण - लौकिक संस्कृत का प्रथम ग्रन्थ "रामायण" है । इसीलिए इसे आदिकाव्य कहते हैं और इसके रचयिता वाल्मीकि को आदि कवि । रामायण सात काण्डों में विभक्त है जिनमें 24 हजार श्लोक समाविष्ट हैं । यह एक धार्मिक ग्रंथ तथा आचार संहिता है और आद्योपान्त रामकथा विद्यमान है। यह परवर्ती साहित्यकारों का आधार ग्रन्थ है। इसमें नैतिक आदर्शों की विपुलता है । विभिन्न मतों का अवलोकन करने पश्चात् रामायण का समय (रचनाकाल) 500 ई.पू. मानना युक्ति संगत है । महाभारत - महाभारत भारतीय साहित्य का आकर ग्रन्थ है । इसमें कौरव पाण्डवों के युद्ध की कथा के अतिरिक्त अनेक आख्यान, धार्मिक उपदेश एवं शिक्षाएँ प्रतिपादित हैं, यह विश्वकोष माना गया है । महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं । यह ग्रन्थ 18 पों में आबद्ध कौरव पाण्डवों से सम्बद्ध इतिहास है । इसे “पञ्चमवेद" भी कहा गया है । भारतम् पञ्चमोवेदः । इसके 18 पर्वो के नाम अधोलिखित हैं - आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन आवश्मेधिक आश्रमवासिक, मौसल, महाप्रस्थानिक और स्वर्गारोहण । इस प्रकार महाभारत में 1 लाख श्लोक हैं । इस ग्रंथ की महत्ता लोकोत्तर/सर्वोपरि है । विभिन्न मतों का अध्ययन करने के पश्चात् इसकी समय सीमा लगभग 500 ई. पू. या प्रथम शताब्दी निर्धारित की गयी है । इस ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण भाग श्रीमद्भगवद् गीता है । इसमें 18 अध्याय है । जिनमें श्री कृष्ण अर्जुन को प्रेरणाप्रद उपदेशों का निदर्शन है । महाकाव्यों का विकास : रामायण और महाभारत ग्रन्थों के पश्चात् पाणिनी ने "पातालविजय" (जाम्बवती जय) महाकाव्य 18 सर्गों में लिखा, इसके साथ ही वररुचि ने भी “स्वर्गारोहण" काव्य बनाया
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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