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________________ xiv संस्थान श्री महावीर जी ने साहस और धैर्य धारण कराया । मेरे शोध कार्य को सम्पूर्णता प्रदान करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है । अतः उनका चिर आभारी हूँ । वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट वाराणसी, जैन विद्या शोध संस्थान महावीरजी, सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर जी एवं शासकीय महाविद्यालय पुस्तकालय, दमोह आदि स्थानों से बहुविध सहयोग और सामग्री पाकर प्रोत्साहित होता रहा हूँ । अतः उक्त संस्थाओं के संचालकों का हृदय से कृतज्ञ हूँ । शोध विषय को सम्पूर्णता देने में निजी पुस्तकालयों में गुरुवर डॉ. भागचन्द्र जी जैन "भागेन्दु" दमोह एवं श्री वीरेन्द्र कुमार जी इटोरया, दमोह के निजी पुस्तकालयों का भरपूर उपयोग किया है । अतः महानुभावों के प्रति विनयावनत हूँ। शोधार्थी के चिंतन को मूर्तरूप प्रदान करने में अपने साथी शोधार्थियों का विशेष योगदान भी उल्लेखनीय है । इस क्रम में सर्वप्रथम परमादरणीया, विदुषी डॉ. सुषमा जैन के भगिनीवत् स्नेह और शोध-सामग्री सुलभ कराने जैसे सहयोग के लिये उनके प्रति आभारी और कृतज्ञ हूँ। मेरे शोध मार्ग के हम सफर श्री प्रो. मुन्नालाल जी जैन शास्त्री ने अपनी मधुर मुस्कान, विनम्रता और सहयोग से मुझे सदैव प्रभावित किया और कार्य को सरलतर किया है । अत: उनके प्रति श्रद्धाभाव समन्वित सादर नमन समर्पित है । मेरी इस यात्रा में अनन्य मित्र, शोधार्थी श्री अनिलकुमार जैन के अविस्मरणीय योगदान को समाविष्ट करना मेरा परम कर्तव्य है। जिन्होंने वर्षाकाल में मेरे गाँव "मडिया देवीसींग" जाकर मुझे उत्साहित करते हुए शोध कार्य में आये शैथिल्य को दूर किया । शोध कार्य को प्रगति देने के लिये उनके प्रति आभारी __ मेरे मन में सुसंस्कारों का बीजारोपण करने वाले मेरे (जीवन के) प्रथम शिक्षा गुरु परम श्रद्धेय पं. श्री अमृत लाल परौहा जी की असीम अनुकम्पा, निरन्तर प्रेरणा और परम आदरणीय पं. श्री सीताराम राजोरिया जी की शुभाकाँक्षा और सहयोग के फलस्वरूप यह महनीय कार्य संपन्न कर सका हूँ । अतः इनके श्री चरणों में सविनय नतमस्तक हूँ। मेरे जीवन संघर्ष की सफलता में सहभागी सम्माननीय श्री वेद प्रकाश मिश्र जी (विदिशा) के प्रति चिर कृतज्ञ हूँ। परम पूज्य प्रातः स्मरणीय, चिरवंदनीय पिता श्री परसाद सिंह जी का स्थायी प्रभाव मेरे जीवन दर्शन और चिंतन पर अंकित है । मेरा जीवन उनकी आशाओं, विश्वासों की आधार शिला है । मानवीय गुणों और उच्चादर्शों से मुझे सुसंस्कृत करने वाले अपने पिता श्री का मैं आजीवन ऋणी रहूँगा । परमपूज्या माता श्री रामकली बाई जी की ममतामयी गोद में खेलने का सौभाग्य पाकर धन्य हो गया हूँ । इस शोध महायज्ञ को पूर्ण करने में परम पूज्य पिता श्री परसाद सिंह जी, माता श्री रामकली बाई जी, बहनोई श्री भगवान सिंह तोमर, बहिन सौ. शकुन्तला तोमर, अनुजद्वय श्री राजेन्द्र सिंह- श्री रवेन्द्र सिंह और मेरी धर्मपत्नी सौ. कमला देवी का योगदान विशेष स्मरणीय है । जिन्होंने (पारिवारिक असुविधाओं के बावजूद) तन, मन, धन से सहयोग देकर मेरे शोध सफर को सुगम बना दिया । अपने पारिवारिक सहयोग के परिणाम स्वरूप ही यह शोध कार्य प्रबन्ध का रूप ले सका है । अत: परिवार जनों के प्रति हृदय से आभारी
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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