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________________ 152 विषय वस्तु की यथार्थता को समझाती हैं । प्रत्येक छन्द की अन्तिम पङ्क्ति प्रायः सभी छन्दों में समान है । पद्यों में अनुप्रासादि अलङ्कार परिलक्षित किये जा सकते हैं । लेखक की सरल भाषा संस्कृत पद्य रचना में अत्यन्त उपयुक्त और मधुर बन पड़ी है । लेखक ने "नक्तन्दिनं दहति चित्तमिदं जनानाम्"प्रस्तुत पङ्क्ति का प्रयोग समस्यापूर्ति के रूप में अपने कतिपय संस्कृत पद्यों में किया है । लेखक की अत्यन्त सुरम्य, सरस भाषा पाठकों को मुग्ध कर लेती है, प्रसाद गुण पूर्ण यह पद्य शृङ्गार रस की अभिव्यक्ति करता है "रात्रिक्षणे ज्वलति चेतसि चक्रद्वन्द्वः चित्ते दिने ज्वलति कामुकचौरवर्गः । अर्थाजने श्रमशतेन हताशयानां, नक्तन्दिनं दहति चित्तमिदं जनानाम् ।" अलंकारिक सौन्दर्य होने के कारण भाषा संवलित हो गई है, सरल एवं सरस भाव सहृदयों के अन्तर्मन में समाविष्ट हो जाते हैं । रचनाकार ने अपने एक पद्य में चिन्ता की व्यापका का चित्रण कराके उसे चिता की समानता दी है । जो दूसरे के धन में आशा करते हैं तथा विषयों के प्रति इन्द्रियों को संलग्न रखते हैं, ऐसे लोगों का चित्त दिन-रात जलता रहता है। "विपत्तिरेवाभ्युदयस्य मूलम्'77 प्रस्तुत पंक्ति को समस्या पूर्ति के रूप में दयाचन्द्र जी साहित्याचार्य ने अपने कतिपय पद्यों में प्रयुक्त किया है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान विदेशी शासन के द्वारा प्रदत्त कष्टों को सहन करके ही भारतीयों ने सङ्घर्ष किया और आजादी प्राप्त की । छात्र प्रयत्नपूर्वक ग्रन्थों को पढ़कर कठिन परीक्षा रूपी सरिता को पार करते हैं और विद्यारूपी फल प्राप्त करते हैं । इसी प्रकार के परिश्रम और विपत्तियों के पश्चात् ही समृद्धि और प्रगति का पथ प्रशस्त होता है - "कासः सदा रोगसमूहमूलम्, हासः सदा द्रोहसहसमूलम् । . शिक्षा सदा देशसमृद्धिमूलम्, विपत्तिरेवाभ्युदयस्य मूलम्॥" रक्षाबंधन पर्व पर दयाचन्द्र जी साहित्याचार्य ने शार्दूल विक्रीडित छन्द में अपना संदेश अभिव्यञ्जित किया है । प्रसादपूर्ण इस पद्य में भावानुकूल सरल, एवं प्रवाहशील भाषा का प्रयोग सराहनीय है - . "हे हे भारतवीर ! सम्प्रति मुदा प्रोत्तिष्ठ निद्रात्यज ' अज्ञानं दुरितं विदार्य तरसा कालोपयोगं करु । जीवानामिति रक्षणं च मनसा, सत्वेषु मैत्री कुरु, रक्षाबन्धनपूर्व मानवकुले सन्देशमाभाषते ॥" "दीपावली-वर्णनम्' शीर्षक के माध्यम से एक स्फुट पद्य रचना प्राप्त होती है। जिसमें यमकालंकार परिलक्षित होता है - गुण प्रदीपान्समदीपि चात्मनि, ददाह कर्मारिततिं स सन्मतिः । असंख्यदीपा नरदेव दीपिताः, वधू न साम्यं किल वीर तेजसा ॥ "भाडतुला भारतस्य" यह पङ्क्ति समस्यापूर्ति के रूप में दयानन्द जी ने अपने एक पद्य बन्ध में प्रयुक्त की है जिसमें मालिनीछन्द का प्रयोग किया गया है, मालिनी का लक्षण इस प्रकार है -
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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