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________________ 106. पर्युषण पर्व : एक विवेचन (211332), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा. वि. वाराणसी 107. पर्युषण पर्व क्या, कब, क्यों और कैसे, श्रमण, अगस्त 1981 108. प्रश्नव्याकरण की प्राचीन विषयवस्तु की खोज (211397), सागरमल जैन __ अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 109. प्रवर्तक एवं निवर्तक धर्मों का मनोवैज्ञानिक स्वरूप और विकास, दार्शनिक त्रैमासिक, जून 1978 110. प्राचीन जैन आगमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतीकरण एवं समीक्षा (211419), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 111: पार्श्वनाथ जन्मभूमि मंदिर का पुरातत्त्वीय वैभव, श्रवण, 1990 112. फ्रायड और जैनदर्शन, तीर्थकर 113. बन्धन से मुक्ति की ओर (211460), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा. वि. वाराणसी 114. बालकों के संस्कार निर्माण में अभिभावक, शिक्षक और समाज की भूमिका, श्रमण, जनवरी 1980 115. महावीर का जीवन दर्शन, श्रमण, अप्रैल 1986 116. भगवान् महावीर का अपरिग्रह सिद्धान्त और उसकी उपादेयता (211499), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 117. भाग्य बनाम पुरुषार्थ, श्रमण, जुलाई 1985 118. भारतीय दर्शन में सामाजिक चेतना (211551), सागरमल जैन-अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 119. भारतीय संस्कृति का समन्वित स्वरूप (211578), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 120. भेद-विज्ञान : मुक्ति का सिंहद्वार (211605), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 121. मन शक्ति स्वरूप और साधना : एक विश्लेषण (211625), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 122. मानवतावाद और जैन आचार दर्शन, तीर्थकर, जनवरी 1978 123. महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन के जैन धर्म सम्बन्धी मन्तव्यों की समालोचना (211650), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी 124. महावीर का दर्शन : सामाजिक परिप्रेक्ष्य में, श्रमण, अप्रैल 1981 125. महावीर कालीन विभिन्न आत्मवाद एवं जैन आत्मवाद का वैशिष्ट्य (211670), सागरमल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ, पा.वि. वाराणसी सागरमल जीवनवृत्त 689
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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