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________________ 'द्रव्य' शब्द का प्रयोग प्राचीन स्तर के आगमों में सर्वप्रथम उत्तराध्ययन में मिलता है। उत्तराध्ययन के 26वें अध्ययन, जिसमें द्रव्य का विवेचन है, अपेक्षाकृत परवर्ती माना जाता है। वहाँ न केवल 'द्रव्य' शब्द का प्रयोग हुआ है, अपितु द्रव्य, गुण और पर्याय के पारस्परिक संबंध को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। उसमें द्रव्य को गुणों का आश्रयस्थल माना गया है। मेरी दृष्टि में उत्तराध्ययन की द्रव्य की यह परिभाषा न्याय-वैशेषिक दर्शन से प्रभावित लगती है। पूज्यवाद देवनन्दी ने पाँचवीं शताब्दी में अपनी तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि नामक टीका में गुणों के समुदाय को भी द्रव्य कहा है। इसमें द्रव्य और गुण की अभिन्नता पर अधिक बल दिया गया है। पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि में उद्धृत यह चिन्तन बौद्धों के पंच स्कन्ध वाद से प्रभावित है। यद्यपि यह अवधारणा पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि में ही सर्वप्रथम मिलती है, किन्तु उन्होंने "गुणानां समूहो दव्वो"- इस वाक्यांश को उद्धृत किया है, अतः यह अवधारणा पाँचवी शती से पूर्व की है। द्रव्य की परिभाषा के सम्बन्ध में 'द्रव्य गुणों का आश्रयस्थान है' और 'द्रव्य गुणों का समूह है'- ये दोनों ही अवधारणाएँ मेरी दृष्टि में तीसरी शती से पूर्व की है। इस संबंध में जैनों की अनैकान्तिकदृष्टि से की गयी प्रथम परिभाषा हमें ईसा की चतुर्थ शती के प्रारम्भ में तत्त्वार्थसूत्र में मिलती है, जहाँ द्रव्यं को गुण और पर्याययुक्त कहा गया है। इस प्रकार, द्रव्य की परिभाषा के संदर्भ में अनैकान्तिकदृष्टि का प्रयोग सर्वप्रथम तत्त्वार्थसूत्र में मिलता है। षद्रव्य यह तो हम स्पष्ट कर चुके हैं कि षद्रव्यों की अवधारणा का विकास पंचास्तिकाय की अवधारणा से ही हुआ है। लगभग ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दी में ही पंचास्तिकायों के साथ काल को भी स्वतंत्र द्रव्य मानकर षद्रव्यों की अवधारणा निर्मित हुई थी। यद्यपि काल स्वतन्त्र द्रव्य है या नहीं? इस प्रश्न पर लगभग ईसा की दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक यह विवाद चलता रहा है, जिसके संकेत हमें तत्त्वार्थसूत्र के भाष्य से लेकर विशेषावश्यकभाष्य की रचनाओं तक अनेक ग्रंथों में मिलते हैं, किन्तु ऐसा लगता है कि सातवीं शताब्दी के पश्चात् यह विवाद समाप्त हो गया और श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनों परम्पराओं में षटद्रव्यों की मान्यता पूर्णतः स्थिर हो गई, उसके पश्चात् उसमें कहीं कोई परिवर्तन नहीं हुआ। ये षद्रव्य निम्न हैं- धर्म, अधर्म, आकाश, जीव, पुद्गल और काल। आगे चलकर इन षद्रव्यों का वर्गीकरण अस्तिकाय-अनस्तिकाय, चेतन-अचेतन अथवा मूर्त-अमूर्त के रूप में किया जाने लगा। अस्तिकाय और अनस्तिकाय द्रव्यों की अपेक्षा से धर्म-अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल- इन पाँच को अस्तिकाय और काल को अनस्तिकाय-द्रव्य माना गया। चेतन-अचेतन द्रव्यों की अपेक्षा से धर्म, जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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