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________________ ३५८. नव पदार्थ ४२. पांच आश्रव नें इविरत तांम, माठी लेस्या तणा परिणांम। माठी लेस्या तो जीव , ताय, तिणरा लषण अजीव किम थाय।। ४३. जीव न लषणा सूं पिछांणो, जीव रा लषण जीव जाणों। जीव रा लषण ने अजीव थापे, ते तो वीर नां वचन उथापे ।। ४४. च्यार सगन्या कही जिणराय, ते पिण पाप तणा छे उपाय। पाप रो उपाय ते आश्रव, ते आश्रव जीव दरब ।। ४५. भला नें मूंडा अधवसाय, त्यां ने आश्रव कह्या जिणराय। ___भला सं तो लागे , पुन, मूंडा सूं लागे पाप जबूंन ।। ४६. आरत ने रुद्र ध्यांन, त्यांने आश्रव कह्या भगवान। आश्रव पाप तणा छ दुवार, दुवार तेहिज जीव व्यापार ।। ४७. पुन ने पाप आवानां दुवार, ते करम तणा करतार। करमां रो करता आश्रव जीव, तिण नें कहें अग्यांनी अजीव ।। ४८. जे आश्रव नें अजीव जांणे, ते पीपल बांधी मूरख ज्यूं तांणे। करम लगावे ते आश्रव, ते निश्चेई जीव दरब।। ४६. आश्रव ने कह्यों रुंधाणो, आ जिन जी रा मुख री वाणी। ओ कीसो दरब रुंधाणो, कीसो दरब थिर थपाणो ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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