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________________ प्रश्न ९१. सिद्धावस्था क्या है? उत्तर : उत्तर : चार घातिया कर्मों के नष्ट हो जाने पर शुद्धात्मा की प्राप्ति हो जाती है - यह भाव मोक्ष है । जीवन्मुक्त अरिहन्त भाव मोक्ष के. निमित्त से चार अद्यातिया कर्मों का नाश करके (अशरीरी होकर ) द्रव्य मोक्ष प्राप्त करते हैं । यह अष्टकर्मों के क्षय से उत्पन्न अशरीरी अवस्था ही सिद्धावस्था है । प्रश्न ९२. सिद्ध परमेष्ठी अशरीरी होने पर चैतन्य मात्र रह जाते हैं, निर्गुण हो जाते हैं या शून्य हो जाते हैं? आयु के अन्तिम समय में अहिन्तों का शरीर स्वत: कपूर की तरह उड़ जाता है और आत्म प्रदेश ऊर्ध्वगामी स्वभाव के कारण लोकाकाश पर स्थित हो जाते हैं - यही सिद्धावस्था है । उत्तर : सिद्ध न तो निर्गुण है और न ही शून्य या जड़ । वे अणुरूप या सर्वव्यापक भी नहीं । वे तो ज्ञान शरीरी अर्थात् ज्ञान चैतन्य से युक्त हैं वे सर्वज्ञ हैं । 1 प्रश्न ९३. क्या महामन्त्र बीज मन्त्र है और सब मन्त्र इसी का अंश हैं या विस्तार हैं? इस अपराजेय महामन्त्र में सभी अक्षर आध्यात्मिक ऊर्जायुक्त होने के साथ साथ दिव्य शक्तिमय बीजाक्षर भी हैं। ये कुल ६८ अक्षर हैं । यह अनादि महामन्त्र सम्पूर्ण जिनवाणी का बीज है । इसमें आत्मा की सर्वोच्च अवस्था अन्तर्हित है । यह सभी मन्त्रों का मूल बीज भी है । शेष मन्त्र इसी का प्रकारान्तर से विस्तार या अनुकरण हैं । यह प्रकट वीर्य महामन्त्र है । मन्त्र शक्ति और प्राणवायु की एकता सहस्रार में पहुँचकर पूर्ण मन्त्र बनती है । मन्त्र किसी ऋषी सा अज्ञात शक्ति की दीर्घ कालीन साधना का परिणाम या फल होता है । सामान्य मन्त्र निष्कामिता मूलक होता 219
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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