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________________ 11488 महामंत्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण बस वह तपस्वी का वेष बनाकर और कुछ स्वादिष्ट फल लेकर 'चक्रवर्ती सुभीम के पास पहुंचा। उसने वे फल चक्रवर्ती को दिए। फल बहत स्वादिष्ट थे। चक्रवर्ती ने और खाने की इच्छा प्रकट की। तपस्वी ने कहा, मैं लवण समुद्र के एक टापू में रहता हूं, वहीं ये फल प्राप्त होते हैं। आप मेरे साथ चलिए और यथेच्छ रूप से खाइए। चक्रवर्ती लोभ का संवरण न कर सके और उस तपस्वी (व्यंतर) के साथ चल दिये। जब व्यंतर समुद्र के बीच में पहुंच गया तो तुरन्त वेष बदलकर क्रोधपूर्वक बोला, “दुष्ट चक्रवर्ती, जानता है मैं कौन हूं ? मैं ही तेरा पुराना पाचक हूं। रसोइया हूं। मैं तुझसे बदला लूंगा।" चक्रवर्ती अत्यन्त असहाय होकर णमोकार मन्त्र का पाठ करने लगे। इस महामन्त्र की महाशक्ति के सामने व्यन्तर की विद्या बेकार हो गयी। तब व्यन्तर ने एक उपाय निकाला। उसने चक्रवर्ती से कहा, "यदि अपने प्राणों की रक्षा चाहते हो तो णमोकार मन्त्र को पानी में लिखकर उसे अपने पैर के अंगूठे से मिटा दो। चक्रवर्ती ने भयभीत होकर तुरन्त णमोकार मन्त्र को पानी में लिखकर पैर से मिटा दिया। बस व्यन्त र की बात बन बैठी । मन्त्र का प्रभाव अब समाप्त हो गया। तुरन्त व्यन्तर ने चक्रवर्ती को मारकर समुद्र में फेंक दिया और बदला ले लिया। अनादर करने पर महामन्त्र का कोई प्रभाव नहीं रहता, बल्कि ऐसे व्यक्ति का अपना शरीरबल एवं मनोबल भी क्षीण हो जाता है। णमोकार मन्त्र के अपमान के कारण चक्रवर्ती को सप्तम नरक में जाना पड़ा। __ मन की पवित्रता, उद्देश्य की पवित्रता और शतप्रतिशत आस्था इस महामन्त्र के लिए परमावश्यक है। भक्त अज्ञानी हो, रुग्ण हो, उचित आसन से न बैठा हो, शारीरिक स्तर पर अपवित्र हो तो भी क्षम्य है। महामन्त्र ऐसे व्यक्ति की भी रक्षा करता है और उसे शक्ति प्रदान करता है। परन्तु जानबूझकर लापरवाही और निरादर करने वालों को मन्त्र-रक्षक देवी-देवता क्षमा नहीं करते। "इत्यं ज्ञात्वा महामव्याः कर्तव्यः परया मुदा। सार पंचनमस्कारः विश्वासः शर्मदः सताम् ।."
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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