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________________ महामन्त्र थमोकार अर्थ, व्याख्या (पदक्रमानुसार) | 1353 "ओंकारं विन्द संयक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव, ओंकाराय नमो नमः॥" ओंकार को कई प्रकार से लिखा जाता है(1) ओम्, (2) ओम्, (3) ॐ । जैन परम्परा में तीसरा रूप (ॐ) हो प्रचलित है। ॐ का चन्द्रविन्दु सिद्धों का प्रतीक है और अर्धचन्द्र है सिद्धशिला का प्रतीक । आशय यह हुआ कि ॐ कार के नियमित स्तवन और जाप से भक्त स्वयंसिद्ध स्वरूप की प्राप्ति करता है। असिआउसा णमोकार मन्त्र का यह एक संक्षिप्त रूप और है। संक्षेपीकरण इस प्रकार है अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधु भक्तों में इस बीजाक्षरी संक्षिप्त मन्त्र का भी खब माहात्म्य एवं प्रचलन है। इसमें प्रत्येक परमेष्ठी का पहला अक्षर ज्यों का त्यों लेकर उसकी निर्विकारता की पूरी रक्षा का भाव है। अतः जिन भक्तों के पास समय और शक्ति की कमी है वे इस संक्षिप्त मन्त्र के द्वारा भी पूर्ण लाभ ले सकते हैं।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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