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________________ 81208 महामन्त्र -प्रमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण प्रायः सक्रिय रहता है। ये दोनों सांसारिक जिजीविषा के वाहक हैं और हमारे चित्त को अशान्त रखते हैं जब मध्य स्वर अर्थात सुषुम्ना गतिशील हो उठता है तो मन में स्थिरता और शान्ति आती है । वास्तव यहीं से अर्थात् सुषुम्ना के जागरण से हमारी आध्यात्मिक यात्रा का शुभारम्भ होता है । सुषुम्ना के जागरण और सक्रियता में 'नमो अरिहंताणं' के मनन और जपन का अनुपम योग होता है । वास्तव में अहंत के पूर्ण ध्यान का अर्थ हैं स्वयं से साक्षात्कार अर्थात् अपनी परम आत्मा (परमात्मा) दशा में प्रस्थान | इस पद की एतादृश अनेक विशेषताओं की विस्तृत एवं प्रामाणिक चर्चा आगे एक स्वतन्त्र अध्याय में निर्धारित है । णमो सिद्धाणं सिद्धों को नमस्कार हो मोक्ष रूपी साध्य की सिद्धि अर्थात् प्राप्ति करने वाले सिद्ध परमेष्ठियों को नमस्कार हो। जिन सिद्धों ने अपने शुक्ल ध्यान की अग्नि द्वारा समस्त - अष्टकर्म रूपी ईंधन को भस्म कर दिया है और जो अशरीरी हो गये हैं, उन सिद्धों को नमस्कार हो । जिनका वर्ण तप्त स्वर्ण (कुन्दन) के समान लाल हो गया है और जो 'सिद्ध शिला के अधिकारी हैं, उन सिद्धों को नमस्का रहो । पुनर्जन्म और जरा-मरण आदि के बन्धनों को सर्वथा काटकर जो सदा के लिए बन्धन मुक्त हो गये हैं ऐसे उज्ज्वलसिद्ध परमेष्ठियों को नमस्कार हो । आत्मा की पूर्ण विशुद्ध अवस्था सिद्ध पर्याय में ही प्राप्त होती है । आत्मा के गुणों की पूर्णता से युक्त, कृतकृत्य एवं तैलोक्य के शिखर पर विराजमान एवं वन्द्य सिद्ध परमेष्ठियों का, नमन इस पद में किया गया है । नमनकर्ता स्वयं में उक्त गुणों को कभी ला सकेगा, या कम-से-कम आंशिक रूप से ही लाभान्वित हो सकेगा, इसी भावना से वह पूर्णनिर्विकार परमेष्ठी को परम विनीत भाव से नमन कर रहा है। सिद्ध परमेष्ठी के प्रति नमन आत्मा की पूर्ण विद्धता के प्रति नमन है । मानव विकल्पों से जन्म-जन्मान्तर से जूझता चला आ रहा है। वह 1. " अष्ठविह कम्म वियना, सीदी मूदा णिरं नणा णिवा' । अट्ठगुणा किवकच्चा, लोयग्गाणिवासिणो सिद्धा ।। " गोम्मटसार जीवनकाण्ड गाथा - 68
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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