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________________ 3 110 2 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण ध्यान देते हैं। ये सारी काम शक्ति को ओज धातु में परिणत करते हैं। कामजयी स्त्रीपुरुष ही इस ओज धातु को मस्तिष्क में संचित कर सकते हैं। यही कारण है कि समस्त देशों में ब्रह्मचर्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। स्पष्ट है कि णमोकार मन्त्र के साधक में ब्रह्मचार्य पालन भी पूर्ण 'शक्ति आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। कुंडलिनी जागरण और आध्यात्मिक साक्षात्कार ब्रह्मचर्य पालन पर आधृत है । मन्त्र शक्ति का प्रस्फुटन कामी व्यक्ति में नहीं हो सकता। योग साधना और मन्त्र साधना कामजयी व्यक्ति ही कर सकता है। योग से कामजय संभव है और कामजयी को मन्त्र सिद्धि संभव है। काम समस्त अनर्थों का मूल है "विषयासक्तचित्तानां गुणः कोवा न नश्यति । न वैदुष्यं न मानुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक्॥ अर्थात् विषयी कामी पुरुषों का कौन-सा गुण नष्ट नहीं होता? सभी गुण ध्वस्त हो जाते हैं । वैदुष्य, मानुष्य, आभिजात्य एवं सत्यवाक आदि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं और गुण हीन व्यक्ति शव ही है। योग की सम्पूर्णता के लिए और उसकी मन्त्र सम्बद्धता के लिए शरीर की भीतरी रचना की जानकारी और उपयोगिता परमावश्यक है। योग और शरीर चक्र-मनुष्य स्थूल शरीर तक ही सीमित नहीं हैं। वह सूक्ष्म शरीर एवं स्वप्न शरीर आदि भेदों से आगे बढ़ता हुबा समाधि की ओर गतिशील हो जाता है। शरीर के इन सभी रूपों को पांच शरीर भी कहा गया है। अन्नमय शरीर, प्राणमय शरीर, मनोमय शरीर, विज्ञानमय शरीर और आनन्दमय शरीर । इन शरीरों को कोश भी कहा गया है। इसी प्रकार औदारिक, वैक्रियक, तेजस, आहारक एवं कार्माण के रूप में जैन शास्त्रों में शरीर भेदों का वर्णन है। इनसे परे आत्मा है। इन शरीरों की ऊपरी सतह पर ईथर शरीर (आकाश-वायु शरीर) है । ईथर के भण्डार स्थान शरीर चक्र कहलाते हैं। ये चक्र ईथर शरीर के ऊपर रहते हैं। प्रत्येक चक्ररूपी फल मेरूदण्ड (रीढ) के पिछले भाग से अलग-अलग स्थान से प्रकट होता है। मेरूदण्ड से (पीठ की तरफ से) चक्र-रूपी पुष्प निकलकर ईथर शरीर की ऊपरी सतह पर खिलते हैं।
SR No.006271
Book TitleMahamantra Namokar Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherMegh Prakashan
Publication Year2000
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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