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________________ अब निहारें परमाणु-जगत् का ताण्डव-नृत्य ४३ तो सब अणुओं का एक पिंड बन जाता और यदि संयोजक शक्ति नहीं होती, तो एक एक अणु अलग-अलग रहकर कुछ नहीं कर पाते। प्राणी-जगत् के प्रति परमाणु का जितना भी कार्य है, वह सब परमाणु समुदाय जन्य है; अनन्त परमाणु-स्कन्ध ही प्राणीजगत् के लिए उपयोगी हैं। स्कन्ध-भेद की प्रक्रिया के कुछ उदाहरण दो परमाणु पुद्गल के मेल से द्विप्रदेशी स्कन्ध बनता है और द्विप्रदेशी स्कन्ध के भेद से दो परमाणु हो जाते हैं। तीन परमाणु मिलने से त्रिप्रदेशी स्कन्ध बनता है और उनके अलगाव में दो विकल्प हो सकते हैं—तीन परमाणु अथवा एक परमाणु और एक द्विप्रदेशी स्कन्ध । , चार परमाणु के समुदय से चतुःप्रदेशी स्कन्ध बनता है और उसके भेद के चार विकल्प होते हैं : - • + + + + १. एक परमाणु और एक त्रिप्रदेशीय स्कन्ध । २. दो द्विप्रदेशी स्कंध। क्रमश : नवीन अणु के मूल चूल से एक अल्फा कण निकल भागा जिसका भार ४ . है, अत: उतना ही भार कम हो गया और फलस्वरूप वह १६७ भार का अणु बन गया और सोने के अणु का भार १६७ होता है। इस प्रकार पारे के पुद्गलाणु की पूरण-गलन-प्रक्रिया द्वारा वह (पारा) सोना बन गया। परमाणुओं में ये अल्फा-कण भरे पड़े हैं। हमारे शास्त्रों की परिभाषा में यह कहा जाएगा कि पारा और सोना भिन्न-भिन्न पदार्थ नहीं हैं, बल्कि पुद्गल द्रव्य के दो भिन्न-भिन्न पर्याय हैं, अतएव इनका परस्पर परिवर्तन असम्भव बात नहीं है।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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