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________________ ३७७३ आओ चलें अमूर्त विश्व की यात्रा पर ३७ तात्पर्य यह है कि वस्त्र अनेक तन्तुओं से बनता है। प्रत्येक तन्तु में अनेक रुएं होते हैं उनमें भी ऊपर का रुआं पहले छिदता है, तब कहीं उसके नीचे का । रुआं छिदता है। अनन्त परमाणुओं से मिलन का नाम संघात है। अनन्त संघातों . का एक समुदाय और अनन्त समुदायों की एक समिति होती है। ऐसी अनन्त समितियों के संगठन से तन्तु के ऊपर का एक रुआं बनता है। इन सबका छेदन क्रमश: होता है। तन्तु के पहले रुएँ के छेदन में जितना समय लगता है उसका .. अत्यन्त सूक्ष्म अंश यानी असंख्यातवां भाग समय कहलाता है। अविभाज्य काल = एक समय असंख्यात समय = एक आवलिका २५६ आवलिका = एक क्षुल्लक भव (सबसे छोटी आय) २४५८ ४४४६ - आवलिका = एक प्राण या एक या साधिक १७ क्षुल्लक भव श्वासोच्छ्वास ७ प्राण = एक स्तोक ७ स्तोक = एक लव ३८- लव = एक घड़ी (२४ मिनट) ७७ लव . = दो घड़ी अथवा १ मुहूर्त (४८ मिनट) = ६५५३६ क्षुल्लक भव = १६७७७२१६ = ३७७३ प्राण ३० मुहूर्त = एक दिन-रात (अहोरात्र) १५ दिन = एक पक्ष २ पक्ष एक मास २ मास = एक ऋतु ३ ऋतु = एक अयन २ अयन = एक वर्ष ५ वर्ष . = एक युग ७० लाख करोड़, ५६ हजार करोड़ वर्ष . = एक पूर्व
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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