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________________ १८० " जैन दर्शन और संस्कृति तीसरे प्रकार के सन्यासी भी थे और उन लोगों में पार्श्व मुनि के शिष्यों को पहला स्थान देना चाहिए। जैन परम्परा के अनुसार चातुर्याम धर्म के प्रथम प्रवर्तक भगवान् अजितनाथ और अन्तिम प्रवर्तक भगवान् पार्श्व हैं। दूसरे तीर्थंकर से लेकर तेईसवें तीर्थंकर तक चातुर्याम का उपदेश चला। केवल भगवान् ऋषभ और भगवान् महावीर ने पाँच महाव्रत-धर्म का उपदेश दिया। अभ्यास १. मानवीय सभ्यता से पूर्व यौगलिक व्यवस्था का क्या स्वरूप था? २. क्या ऋषभ को मानवीय सभ्यता का संस्थापक कहा जा सकता है? क्यों? ३. भरत-बाहुबली युद्ध का अपने शब्दों में वर्णन करें । ४. भरत की अनासक्ति को कैसे प्रमाणित किया गया? ५. तीर्थंकर अरिष्टनेमि या पार्श्व का पूर्ण परिचय देते हुए बतायें कि जैन धर्म ऐतिहासिक दृष्टि से महावीर से भी प्राचीन है। १. पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म-लेखक धर्मानन्द कौशम्बी।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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