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________________ हैं; फिर भी उसका मस्तिष्क उद्विग्न नहीं होता, तनाव नहीं आता । यदि मस्तिष्क उत्तेजित हो जाय, बाजार की तेजी-मन्दी से उद्विग्न हो जाय तो किसी समस्या को सुलझा ही न सके अपितु और भी अधिक उलझ जाय। । तथ्य यह है कि जीवन संघर्षपूर्ण है, कदम-कदम पर समस्याएँ हैं । उन समस्याओं को शांत और स्थिर मस्तिष्क से चिन्तन करके ही सलझाया जा सकता है। और यह स्थिरता समत्व से ही प्राप्त हो पाती है। एक व्यापारी अपने किसी कर्मचारी को उसकी किसी भूल अथवा काम में लापरवाही या अनुशासनहीनता के लिए डाँट रहा है; उसी क्षण कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति आ जाय तो उससे मुस्कराकर शांत (३९) .
SR No.006264
Book TitleAatmshakti Ka Stroat Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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