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________________ सुरक्षित कर दिया, छिपा दिया। मनुष्य आज तक उसी सुख-शांति के लिए भटक रहा है; चिन्तन भी करता है, हाथ-पैरों से कर्मठता और गतिशीलता भी अपनाता है, भटकता है इधर-उधर शांति की खोज में: लेकिन हदय के भीतर छिपी शांति उसके दृष्टिपथ में आती ही नहीं; क्योंकि उसकी सभी प्रवृत्तियाँ बहिर्मुखी हैं; शान्ति उपलब्ध हो तो कैसे ? और जब शांति पाने के उसके सभी प्रयास विफल हो जाते हैं तो उसका मन-मस्तिष्क विभिन्न प्रकार के तनावों से भर जाता है। ये तनाव व्यक्तिगत भी होते हैं, पारिवारिक भी और वातावरणजन्य भी । तथा आर्थिक, व्यापारिक, जातीय, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय (३०)
SR No.006264
Book TitleAatmshakti Ka Stroat Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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