SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट-II...273 43. स्थविर मुनि बहुमान करण रूप विनय गुणाय नमः 44. स्थविर मुनि स्तुति करण रूप विनय गुणाय नमः 45. उपाध्याय अनासात रूप विनय गुणाय नमः 46. उपाध्याय भक्ति करण रूप विनय गुणाय नमः 47. उपाध्याय बहुमान करण रूप विनय गुणाय नमः 48. उपाध्याय स्तुति करण रूप विनय गुणाय नमः 49. गणावच्छेदक अनासातना रूप विनय गुणाय नमः 50. गणावच्छेदक भक्ति करण रूप विनय गुणाय नमः 51. गणावच्छेदक बहुमान करण रूप विनय गुणाय नमः 52. गणावच्छेदक स्तुति करण रूप विनय गुणाय नमः 70. खमासमण-चारित्र पद की आराधना हेतु प्रदक्षिणा का दोहा रत्नत्रय विनु साधना, निष्फल कही सदीन । भाव रयण नुं निधान छे, जय जय संजम जीव ।। खमासमण के पद 1. सर्वत: प्राणातिपात विरमण रूप चारित्राय नमः 2. सर्वत: मृषावाद विरमण रूप चारित्राय नमः 3. सर्वत: अदत्तादान विरमण रूप चारित्राय नमः 4. सर्वत: मैथुन विरमण रूप चारित्राय नमः 5. सर्वत: परिग्रह विरमण रूप चारित्राय नमः 6. क्षमा धर्म रूप चारित्राय नमः 7. आर्जव धर्म रूप चारित्राय नमः 8. मृदुता धर्म रूप चारित्राय नमः 9. मुक्ति धर्म रूप चारित्राय नमः 10. तपो धर्म रूप चारित्राय नमः 11. संयम धर्म रूप चारित्राय नमः 12. सत्य धर्म रूप चारित्राय नमः 13. शौच धर्म रूप चारित्राय नमः
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy