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250...सज्जन तप प्रवेशिका
णमुत्थुणं णमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं।।1।। आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं।।2।। पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर पुंडरिआणं, पुरिसवर गंधहत्थीणं।।।। लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं,लोगहियाणं, लोगपइवाणं, लोगपज्जोअगराणं।।4।। अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं।।5।। धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरत-चक्कवट्टीणं।।6।। अपडिहयवर-नाण सण घराणं विअट्टछउमाणं।।7।। जिणाणं-जावयाणं, तिन्नाणं-तारयाणं, बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं-मोअगाणं।।8।। सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह, मपुणरावित्ति, सिद्धिगई, नामधेयं, ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं।। ।। जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले। संपईअ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि।।10।।
• अब खड़े होकर 'अरिहंत चेइयाणं' बोलें।
अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं।।1।। वंदण वत्तिआए, पूअण वत्तिआए, सक्कार वत्तिआए, सम्माण वत्तिआए, बोहिलाभ वत्तिआए, निरुवसग्ग वत्तिआए।।2।। सद्धाए, मेहाए, धीईए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं।।3।।
अन्नत्य ऊससिएणं नीससीएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए पित्तमुच्छाए।।1।। सुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुहुमेहिं दिट्ठिसंचालहिं।।2।। एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो।।3।। जाव अरिहंताणं, भगवंताणं, नमुक्कारेणं, न पारेमि।।4।। ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि।।5।।
(एक नवकार का कायोत्सर्ग करके “नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः' कहकर पहली स्तुति कहें)।
बीस स्थानक में, गुणि गुण भेदा भेद ध्याता जो ध्यावे, निर्भय भाव अखेद। तीर्थंकर पदवी, पावे पुण्य प्रधान वंदू विधियोगे, त्रिकरण शुद्धि विधान।।1।।