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________________ 214...सज्जन तप प्रवेशिका 5. कुड्यान्तर - वर्जन - भीत, द्वार आदि की ओट में गृहस्थ हों तो वहाँ नहीं रहना । 6. पूर्वक्रीड़ा अस्मरण स्मरण नहीं करना। विकारवर्द्धक गरिष्ठ भोजन का त्याग करना । 7. प्रणीताभोजन 8. अतिमात्राऽभोग प्रमाण से अधिक आहार नहीं करना । 9. विभूषा परिवर्जन - शरीर की सजावट आदि नहीं करना । यहाँ नव ब्रह्मचर्य गुप्तियों का स्वरूप पुरुष को लक्ष्य में रखकर बतलाया गया है। जहाँ पुरुष के लिए स्त्री का उल्लेख आया है वहाँ ब्रह्मचारी स्त्री के लिए पुरुष समझना चाहिए। - - - - के मकान पूर्व काल में भोगी हुई काम क्रीड़ाओं का इस तप के करने से उत्कृष्ट चारित्र की प्राप्ति होती है और भावों की निर्मलता में अभिवृद्धि होती है । यह आगाढ़ तप गृहस्थ एवं श्रमण दोनों के लिए करणीय बतलाया गया है। इसकी प्रचलित विधि यह है - इस तप में एक-एक गुप्ति की आराधना के लिए नौ-नौ कवल के नौ एकासना करें। इस प्रकार नौ एकासना 81 कवल पूर्वक नौ दिनों में पूर्ण होता है। इस तप उद्यापन में साधु, साध्वी एवं ब्रह्मचारी श्रावकश्राविकाओं को वस्त्र आदि का दान देवें । उद्यापन • वर्तमान परिपाटी के अनुसार इस तप के दिनों में निम्नलिखित कायोत्सर्ग आदि करें साथिया खमा, कायो. माला 9 9 9 20 जाप ॐ नमो नवबंभचेर गुत्तिधराणं 15. निगोदआयुक्षय तप जैन शब्दावली में साधारण वनस्पति काय को निगोद तथा सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय को सूक्ष्म निगोद कहते हैं । इस विश्व में निगोद के असंख्य गोले हैं। एक-एक गोले में असंख्यात निगोद हैं और एक-एक निगोद में अनन्त जीव होते हैं। इस पृथ्वी पर बहुत से ऐसे जीव हैं जो अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में ही रहे हुए हैं, उन्हें 'अव्यवहार राशि' के जीव कहा जाता है। निगोद के जीवों की
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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