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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...119 • प्रचलित व्यवहार के अनुसार इस तप साधना की विशुद्धि हेतु निम्नलिखित जाप आदि करेंजाप साथिया खमा. कायो. माला श्री महावीरस्वामी नाथाय नमः 12 12 12 20. 22. पुण्डरीक तप ___भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर का नाम पुण्डरीक था। यह पुण्डरीक भरत-चक्रवर्ती के पुत्र एवं भगवान आदिनाथ के पौत्र थे। उनका मूल नाम ऋषभसेन था। भगवान ऋषभदेव ने केवलज्ञान होने के पश्चात प्रथम उपदेश दिया, तब उस देशना को सुनकर भरत चक्रवर्ती के ऋषभसेन आदि पाँच सौ पुत्रों एवं सात सौ पौत्रों ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की। इस प्रथम देशना में पुण्डरीक को प्रमुख साधु, ब्राह्मी को प्रमुख साध्वी, श्रेयांस कुमार को प्रमुख श्रावक और सुन्दरी को प्रमुख श्राविका के रूप में व्रत प्रदान कर चतुर्विध संघ की स्थापना की। ___ यह तप पुण्डरीक स्वामी के आराधनार्थ किया जाता है, इसलिए इसे पुण्डरीक तप कहते हैं। भगवान आदिनाथ के प्रथम गणधर पुण्डरीक स्वामी ने पाँच करोड़ मनिवरों के साथ चैत्री पूर्णिमा के दिन सिद्धाचल तीर्थ पर सिद्धि प्राप्त की थी। अत: यह तप पूर्णिमा तिथि को आश्रित करके किया जाता है। इस तप के फल से मोक्ष-प्राप्ति एवं रोग-शोक-सन्तापादि का निवारण होता है। यह आगाढ़ तप श्रमण और गृहस्थ दोनों के लिए करणीय है। इस तप के सम्बन्ध में दो विधियाँ प्राप्त होती हैं। प्रथम प्रकार ... तहा चित्तपुन्नमासीए आरम्म पुंडरीय-गणहर-पूया-पुव्वमुववासाइणमन्नतरं तवो दुवालय-पुनिमाओ पुंडरीय तवो। विधिमार्गप्रपा, पृ. 26 विधिमार्गप्रपा के अनुसार यह तप चैत्री पूर्णिमा को प्रारम्भ कर पुण्डरीक गणधर की पूजा पूर्वक उपवास आदि के द्वारा बारह पूर्णमासियों में किया जाता है। इस विधि से स्पष्ट होता है कि यह तप बारह पूर्णिमा पर्यन्त एक वर्ष तक किया जाता है। उसमें यथाशक्ति उपवास, आयंबिल, नीवि या एकासना कोई भी तप कर सकते हैं।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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