SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...53 | 3 | 4 | 5 | 6 | 23 वीं श्रेणी | 2 24 वीं श्रेणी 25 वीं श्रेणी | 5 26 वीं श्रेणी 27 वीं श्रेणी | 6 | 1 | 28 वीं श्रेणी 29 वीं श्रेणी 30 वीं श्रेणी 31 वीं 32 वीं श्रेणी 34 वीं श्रेणी 35 वी श्रेणी | 36 वीं श्रेणी उद्यापन - महाघन-तप के पूर्ण होने पर विधि पूर्वक बृहत्स्नात्र की पूजा करें, उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, फल, नैवेद्य आदि चढ़ायें, यथाशक्ति साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें। • प्रचलित विधि के अनुसार इस तप के दिनों में प्रतिदिन अरिहन्त पद की आराधना करें। साथिया खमासमण कायोत्सर्ग 12 12 12 20 22. वर्ग तप घन को घन से गणा करना वर्ग कहलाता है। घन-तप के 64 पद हैं। उन 64 पद को 64 से गुणा करने पर वर्ग-तप के 64x64=4096 पद होते हैं। वर्ग के इस आंकड़े के समान निर्धारित क्रम से तप करना, वर्ग तप कहलाता है। माला
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy