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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...121 ___ यहाँ सहज प्रश्न उठता है कि अपान मुद्रा भी शरीरस्थ पाँच वायुओं में से वायु का एक प्रकार है तथा वायु मुद्रा में निहित वायु शब्द भी वायु अर्थ को घोतित करता है तब दोनों वायु भिन्न-भिन्न हैं या एकरूप? इस समाधान के लिए दोनों मुद्राओं का अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि अपान वायु शरीर के मूलाधार चक्र (मल-मूत्र द्वार का मध्य भाग) और स्वाधिष्ठान चक्र (मेरूदण्ड के अन्तिम छोर) पर स्थिर रहता है जबकि सामान्य वायु श्वास-प्रश्वास के द्वारा गृहीत-विसर्जित की जाती है। इस तरह दोनों वायुओं में स्वरूप भेद है। अपान वायु मुद्रा मृत संजीवनी मुद्रा के नाम से भी जानी जाती है। यह यौगिक परम्परा की मुद्रा है जो उसके अनुयायियों द्वारा धारण की जाती है। यह दिल और धड़कन के लिए उपयोगी है। विधि सर्वप्रथम वज्रासन या सुखासन में बैठ जायें। तदनन्तर वायु मुद्रा (तर्जनी के अग्रभाग को अंगूठे के मूल भाग से स्पर्शित) करके एवं हल्का सा दबाव देते हुए अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा और अनामिका के अग्रभाग से जोड़ें। फिर कनिष्ठिका अंगुली को सीधा रखने पर अपान वायु मुद्रा बनती है।25 निदेश- 1. इस मुद्रा हेतु वज्रासन, उत्कटासन, सुखासन, समपादासन ये सभी श्रेष्ठ कहे गये है। 2. मुद्रा की सफलता हेतु 48 मिनट का प्रयोग आवश्यक है। प्रारम्भ में 10 से 18 मिनट का अभ्यास कर सकते है किन्तु शनैः शनैः 48 मिनट तक पहुँचना जरूरी है। 3. इच्छा के अनुसार किसी भी समय यह मुद्राभ्यास किया जा सकता है। सुपरिणाम ... • इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से शारीरिक तौर पर सबसे अधिक हृदय प्रभावित होता है। अचानक हृदय गति का अवरोध, अन्जाइना पेईन एवं हाई ब्लडप्रेशर के वक्त इस मुद्रा का प्रयोग सोरबिट्रेट दवा अथवा पावरफुल इंजेक्शन का कार्य करता है। इसलिए यह मुद्रा मृत संजीवनी मुद्रा भी कहलाती है। • इस मुद्रा को प्रतिदिन प्रातः एवं शाम 15-15 मिनट करें तो हृदय की घबराहट, हृदय की मंदगति, हार्टबीट्स का चूकना, पेट की वायु का हृदय तक पहुँचकर तकलीफ देना आदि से राहत मिलती है और हृदय शक्तिशाली बनता है। • इस मुद्राभ्यास से अधिक जागरण, मानसिक चिन्ता, परिश्रम की
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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