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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...111 प्राण का मुख्य स्थान हृदय (आनन्द केन्द्र) है। प्राण नाभि से लेकर कंठ पर्यन्त प्रसरित है। प्राण का मुख्य कार्य श्वास-प्रश्वास करना, खाया हुआ भोजन पचाना, भोजन के रस को अलग-अलग इकाईयों में विभक्त करना, भोजन से रस बनाना, रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है। अपान वायु का स्थान गुदा एवं गुदा का ऊपरी भाग है। ये स्थान स्वास्थ्य केन्द्र और शक्ति केन्द्र कहलाते हैं। योग ग्रन्थों में इन्हें स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र कहा जाता है। अपान शक्ति मलद्वार के भीतर मूत्रेन्द्रिय तक फैली हई है। अपान वाय का मुख्य कार्य मल-मत्र, वीर्य, रज और गर्भ को बाहर निकालना है। चलने-बैठने, उठने-सोने आदि गतिशील स्थितियों में मदद करना है। जिस प्रकार जीवन, परिवार, समाज को टिकाये रखने के लिए अर्थोपार्जन जरूरी है उसी प्रकार विसर्जन भी अनिवार्य है। कदाच शरीर में ग्रहण एवं संग्रह करने की ही शक्ति हो और निर्गमन के लिए कोई अवकाश न हो तो व्यक्ति ही क्यों? किसी भी प्राणधारी सत्ता के लिए एक दिन भी जिंदा रहना मुश्किल है। विसर्जन के द्वारा शरीर का शोधन होता है। शरीर विसर्जन की क्रिया एक, दो या तीन दिन बन्द रखें तो पूरा शरीर मल से आकीर्ण और दुर्गन्ध युक्त हो जाए। ऐसी स्थिति में मनुष्य का स्वस्थ रहना मुश्किल हो जाता है। अशुचि एवं गन्दगी का शोधन करने के लिए अपान मुद्रा की जाती है।23। संस्कृत के अपानम् का शाब्दिक अर्थ गुदा है। शरीर में मल-मूत्र का स्थान गुदा कहलाता है। अपान वायु से तात्पर्य-शरीर में रहने वाली वह वायु जो नीचे की ओर गमन करती है और गुदा के मार्ग से बाहर निकलती है। मल या अशुचि द्रव्य को बाहर निकालना अपान वायु का निजी स्वभाव है। यह मुद्रा योग तत्त्व मुद्रा विज्ञान की यौगिक परम्परा में दैहिक शुद्धि के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त की जाती है। विधि किसी भी ध्यान आसन में तन-मन को सुस्थिर कर दें। तदनन्तर अंगूठे के अग्रभाग को हल्का दबाव देते हुए मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों से स्पर्शित करें, शेष तर्जनी और कनिष्ठिका अंगुलियों को सीधा रखने पर अपान मुद्रा बनती है।28
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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