SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...105 निर्देश- 1. इस मुद्रा के अभ्यास में समय सीमा का पूरा ख्याल रखना चाहिए। प्रारम्भ में दो-दो मिनट ही करें तत्पश्चात स्वयं की प्रकृति और परिणाम के अनुसार समय सीमा में वृद्धि करें। ____ 2. सुरभि मुद्रा के अनेक प्रकार हैं। सभी के प्रयोग समझ पूर्वक करें, अन्यथा विपरीत परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं जैसे कि वायु सुरभि मुद्रा का अधिक प्रयोग करने पर वायु का शमन तो हो जाता है लेकिन उष्णता बढ़ जाती है अथवा वात के रोग दूर हों तो पेट या मूत्र रोग की पीड़ा बढ़ जाती है। जल सुरभि मुद्रा का अधिकतम प्रयोग करने पर जल तत्त्व के रोग तो शान्त हो जाते हैं किन्तु पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है। इसलिए प्रयोग करने वाले साधक को अपनी शारीरिक प्रकृति का अवश्य ख्याल रखना चाहिए। पुनश्च समझें कि कफ प्रकृति से ग्रसित व्यक्ति यदि पृथ्वी सुरभि मुद्रा का सामान्य रूप से प्रयोग करें तो अग्नि तत्त्व से कफ का उपशमन हो जायेगा, किन्तु समय सीमा का ध्यान न रखें तो जल तत्त्व की मात्रा घट सकती है इसलिए शरीर की प्रकृति एवं मुद्रा के परिणामों का पूरा-पूरा ख्याल रखें। सुपरिणाम • इस वायु सुरभि मुद्रा में अग्नि और वायु तत्त्व का सम्मिश्रण होने से वायु तत्त्व सुनियोजित ढंग से कार्य करने लगता है, जिसके फलस्वरूप वायु जनित समग्र विकृतियों का निवारण होता है, वायु (गैस) के दर्द ठीक हो जाते हैं। डॉक्टर परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि जिन वायु विकारों का पता नहीं चलता वे इस वायु मुद्रा के प्रयोग से तत्क्षण ठीक होने की स्थिति में आ जाते हैं। व्यक्ति शान्ति का अनुभव करने लगता है। गैस जनित दर्दो से पीड़ित व्यक्तियों को यह मुद्रा नियम से करनी चाहिए। • मानसिक दृष्टि से ऐन्द्रिक चंचलता दूर होकर एकाग्रता का विकास होता है। अध्यात्म स्तर पर जाप साधकों एवं योगी पुरुषों के लिए यह महत्त्वपूर्ण मुद्रा है। इस मुद्रा प्रभाव से आलस्य, निद्रा, निष्क्रियता, निठल्लापन जैसी वृत्तियाँ हावी नहीं होती। सत्कर्म के प्रति भावों का उल्लास निरन्तर प्रवर्द्धित रहता है। • एक्युप्रेशर के अनुसार यह मुद्रा लीवर सम्बन्धी बीमारियाँ, मासिक स्राव, हेमरेज, कामग्रन्थि सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करती है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy