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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ...99 में रहती है । सारत: एक साधारण व्यक्ति इसका निरंतर प्रयोग करें तो वह हरदम स्वस्थ बना रहता है। • आध्यात्मिक दृष्टि से इस मुद्रा के द्वारा चित्त की निर्मलता बढ़ती है। योग साधना में सहयोग मिलता है। ध्यान करते वक्त यह मुद्रा करने से ध्यानाभ्यासी को ब्रह्मनाद (दिव्यनाद) सुनाई देता है। इस दिव्यनाद में मग्न हुआ व्यक्ति दुनिया की हलचलों से सर्वथा रहित हो जाता है। इस मुद्रा के साथ शुभ संकल्प किया जाये तो वह संकल्प दृढ़ बनकर इच्छित फल प्रदान करता है । जो साधक अपनी साधना की पराकाष्ठा पर है, उसके लिए भी यह मुद्रा आवश्यक है ताकि वह अपनी साधना के अन्य रहस्यों को भी प्राप्त कर सके। • यह मुद्रा उच्चकोटि के योगी एवं गृहस्थ साधकों के लिए भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई है अतः दोनों के लिए लाभप्रद है। अन्य प्रकार की उच्चकोटि की तांत्रिक साधनाओं के लिए भी इस मुद्रा का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह मुद्रा योग मार्ग में तीव्र गति से आगे बढ़ने में अद्भुत प्रकार का सहयोग करती है, इससे अनगिनत रहस्यों की अभिव्यक्ति होती है। ऊँची स्थिति को प्राप्त साधकों के लिए भी यह मुद्रा अग्रसर होने में वरदान सिद्ध होती है। इस मुद्रा के अनुसंधान से पाया गया है कि यह मुद्रा योगी और भोगी दोनों के लिए विशेष कार्य करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इसके निरंतर अभ्यास से साधना की चरम सीमा तक पहुँचा जा सकता है। • एक्यूप्रेशर सिद्धान्त के अनुसार इस मुद्रा के दाब केन्द्र बिन्दु साइनस सम्बन्धी रोगों का उपचार करते हैं। इस मुद्रा से कर्ण एवं आँख सम्बन्धी बिन्दुओं पर भी दबाव पड़ता है इससे तत्सम्बन्धी तकलीफों में भी राहत मिलती है। जैन एवं हिन्दू द्विविध परम्पराओं में इसका प्रयोग प्रमुखतः धार्मिक अनुष्ठान के अवसर पर किया जाता है । इस सुरभि मुद्रा में अंगूठे (अग्नि तत्त्व) को अलग-अलग स्थान पर रखने से अनेक प्रकार बन जाते हैं। तदनुसार उनके परिणाम भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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