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________________ 90... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? प्रतीकात्मक अर्थ है- उष्णता, तेज, प्रकाश, जलाना, चमकना इत्यादि। जैसे अग्नि उष्णता बढ़ाती है, तेज गुण प्रधान है, चहुँ ओर प्रकाश फैलाती है, निकटवर्ती पदार्थों को जला डालती है, पीतवर्णी होने से स्वर्ण के समान चमकती है वैसे ही इस मुद्रा के माध्यम से प्रमाद ग्रसित चेतना सक्रिय बनती है, आत्म गुणों का तेज बढ़ता है, अनन्त ज्ञान आदि गुणों से प्रकाशित होती है, प्रशस्त भावनाओं के वेग से पूर्व संचित पापकर्म जल (नष्ट हो) जाते हैं और अंतत: वह आत्मा तपे हुए कुन्दन के समान निर्मल बन जाती है। इस तरह प्रज्वलिनी मुद्रा का मुख्य हेतु पश्चात्ताप की प्रज्वलित अग्नि में समग्र पापमलों को भस्मीभूत करके आत्म धर्म से स्व-पर को प्रकाशित करना है। विधि __इस मुद्रा के लिए सुखासन में बैठ जायें। तत्पश्चात बायें हाथ की कोहनी के ऊपर के हिस्से पर दाहिने हाथ की कोहनी रखकर, दायें हाथ को इस तरह घुमाकर रखें कि दोनों हथेलियाँ एक-दूसरे से संपृक्त हो जायें और दोनों अंगूठे नाक के सामने रहें। फिर दृष्टि को दोनों अंगूठों पर एकाग्र करने से प्रज्वलिनी मुद्रा बनती है। निर्देश- 1. इस मुद्रा हेतु सुखासन या समपाद आसन उपयोगी है। 2. इस मुद्रा को प्रारम्भ में 8-10 मिनट ही करें, फिर धीरे-धीरे 48 मिनट तक का अभ्यास कर सकते हैं। 3. इस मुद्रा का प्रयोग शरद् ऋतु में अधिक महत्त्व रखता है क्योंकि ग्रीष्म काल में ज्यादा उष्णता बढ़ सकती है। सुपरिणाम • इस मुद्रा में हाथों की आकृति गरूड़ पक्षी की भाँति बनती है इसलिए इसे गरूड़ मुद्रा भी कहते हैं। आचारदिनकर में इस मुद्रा का नाम गरूड़ मुद्रा बताया गया है। गरुड़ मुद्रा इस नाम के पीछे मूल तथ्य यह है कि गरूड़ की दृष्टि तीक्ष्ण होती है। इस मुद्राभ्यास से भी आँखों की रोशनी बढ़ती है। • इस मुद्रा की नियमित साधना चित्त की स्थिरता को बढ़ाती है, सम्यकज्ञान को पृष्ट करती है और मेघाशक्ति विकसित करती है। • अध्ययन की दृष्टि से यह मुद्रा विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। • यह मुद्रा निम्न शक्ति केन्द्रों को प्रभावित कर अध्याय-1 के अनुसार कई तरह के लाभ देती हैं
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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