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________________ 86... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? हो? हम इतने बेहोशी में जी रहे हैं कि हमारे इर्द-गिर्द हजारों तरह के बंधन होने पर भी एक भी बंधन-बंधन रूप प्रतीत नहीं हो रहा। प्रत्युत राग-द्वेष, मोहमाया, झुंठ-कपट जैसे बंधनों में फँसे जा रहे हैं। इस मुद्रा का बाह्य स्वरूप आभ्यन्तर बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है, जन्मोजन्म के बंधनों को तोड़ने के लिए प्रशस्त भाव जागृत करता है तथा संसार समुद्र को पार करवाकर मोक्ष का किनारा उपलब्ध करवाता है। इस तरह बंधक मुद्रा के भंग करना, तोड़ना, किनारा इत्यादि अर्थ भी घटित होते हैं। विधि अधिकतम मुद्राओं में उपयोगी पद्मासन या वज्रासन में बैठ जायें। तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगूठे को बायें हाथ के अंगूठे से पकड़ में लेकर दाएं और बाएं दोनों अंगूठों को बायें हाथ की मुट्ठी में बंद कर दें तथा दाहिने हाथ की सभी अंगुलियों को बायें हाथ की मुट्ठी पर (बायें हाथ की तर्जनी के ऊपर) रखने से बंधक मुद्रा बनती है। 18 इस मुद्रा के स्पष्टीकरण हेतु पुनर्उल्लेख्य है कि इसमें बायें हाथ की पाँचों अंगुलियाँ और दाहिना अंगूठा बायें हाथ की मुट्ठी में बंद रहते हैं तथा दायें हाथ की चारों अंगुलियाँ इस तरह से बायें हाथ की मुट्ठी पर रहती है कि इनके नाखून आसमान की ओर रहते हैं। निर्देश - 1. इस मुद्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ पद्मासन एवं वज्रासन है। इनमें से किसी एक आसन पर अधिकार कर लें। 2. इसका अभ्यास प्रारम्भिक दिनों में 10-15 मिनट का हो, फिर शनै: शनै: एक-एक मिनट बढ़ाते हुए 48 मिनट तक का प्रयोग कर सकते हैं। 3. संशोधकों के मतानुसार इस मुद्रा में क्लीं क्लीं बीजमंत्र का ध्वनि रूप उच्चारण करने से इसका पूरा लाभ मिलता है। 4. इस मुद्रा को सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद करना चाहिए। क्योंकि इससे शरीर की उष्णता बढ़ती है और वह सूर्य के ताप से युक्त होकर नये रोग उत्पन्न कर सकती है। सुपरिणाम • इस मुद्रा के द्वारा हाथ में रहे हुए उस तरह के बिन्दु प्रभावित होते हैं जिनसे शरीर की उष्ण ऊर्जा में बढ़ोत्तरी होती है । उस ऊर्जा से शरीर को शक्ति मिलती है।
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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