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________________ श्रुत सर्जन की परम्परा के पुण्यभागी श्री शांतिलालजी चौपड़ा परिवार बैंगलोर अपनी प्राकृतिक शीतलता एवं सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह शहर धार्मिक संस्कार, बृहद्काय जैन पाठशाला, साधना-आराधना के वृद्धिंगत माहौल के लिए भी जाना जाता है। आराधना की अपेक्षा इस प्रदेश को पंचम आरे का महाविदेह कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस धर्मनगरी के निवासी हैं जिनधर्म रसिक श्री शांतिलालजी चौपड़ा। मूलत: जीवाणा (जालोर) निवासी शांतिलालजी को धार्मिक संस्कार अपनी जन्मभूमि से ही प्राप्त हुए हैं। श्रद्धा सम्पन्न पिताश्री छगनलालजी का जीवन दिगम्बर साधना पद्धति से प्रभावित था। माता सभटी बाई की आचरण चुस्ती एवं दृढ़ता ने बचपन से ही आप चारों भाइयों के लिए एक प्रेरणादीप का कार्य किया। सबसे ज्येष्ठ श्री शांतिलालजी हैं। आपसे छोटे तीन भाई रायचंदजी, कानराजजी एवं उच्छवराजजी भी आपश्री के समान धर्मनिष्ठ सुश्रावक हैं। शांतिलालजी ने अपने जीवन में माता-पिता के बाद सर्वोच्च स्थान धर्म को दिया है। श्रावकाचार के पालन में आप बड़े चुस्त हैं। प्रतिदिन सामायिक, नवकारसी, प्रभु पूजा, जाप आदि नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करते हैं। आपका जीवन आडम्बर एवं दिखावे से अत्यन्त दूर तथा आध्यात्मिक भक्ति स्रोतों से सदैव सराबोर रहा है। सामूहिक आयंबिल शाला, सामूहिक वर्षीतप, तीर्थयात्रा, धार्मिक आयोजन आदि में आप हमेशा अग्रणी रहते हैं तथा विगत कुछ वर्षों से तप साधना एवं स्वाध्याय से अधिक जुड़ गए हैं। स्वाध्याय निमग्ना साध्वी सौम्यगुणाजी आपके ममेरी बहन है। पारिवारिक जिम्मेदारियाँ होने पर भी गुरुवर्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. एवं अपनी बहन महाराज के दर्शनार्थ आने की पूर्ण भावना रखते हैं। बहिन म.सा. जब से शोध अध्ययन में जुटी हुई हैं तभी से उनकी रचनाओं को प्रकाशित करवाने
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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