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________________ 58... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? रोग जैसे- रक्तदाब, अन्जाइन पेन, तज्जन्य अन्य बीमारियाँ दूर होती है। इस मुद्रा से टान्सिल बढ़ना, कान एवं आँख की एलर्जी तथा लिम्फ की सूजन आदि रोगों का उपचार भी होता है। • आध्यात्मिक स्तर पर ध्यान करते वक्त इस मुद्रा से भावधारा निर्मल होती है। ज्ञान केन्द्र (सहस्रार चक्र) पर प्रकंपन के अनुभव होते हैं तथा दिव्य शक्ति के साथ अनुसंधान होने का अनुभव होता है। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार यह मुद्रा शरीर की तात्त्विक स्थिति (आकाश तत्त्व) को न्यूनाधिक करते हुए उसे दोष मुक्त करने में पूर्ण समर्थ है। किसी ग्रह के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए हीरा, पन्ना, नीलम, मूंगा आदि विभिन्न रत्न पहने जाते हैं। जो ग्रह दोष के कारण उत्पन्न तात्त्विक असंतुलन को दूर करते हैं, व्यक्ति को लाभ मिलता है। यही सिद्धांत योगमयी मुद्रा विज्ञान के साथ है। इसे भी ग्रह की रहस्यमयी गतिविधि को ध्यान में रखकर बनाया गया है। • भौतिक दृष्टि से माला के मनके को अंगूठे पर रखकर मध्यमा के अग्रभाग से फेरने पर बाह्य समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। • एक्युप्रेशर के अनुसार मध्यमा अंगुली में भी साइनस सम्बन्धी रोगोपचार के बिन्दु हैं। उन पर दबाव होने से जुकाम ठीक हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार यह शनि की अंगुली है अग्नि और शनि का संयोग होने पर अध्यात्म शक्ति का जागरण होता है। मुनि श्री किशनलालजी के मतानुसार आकाश मुद्रा का अभ्यास व्यक्ति के शरीर में स्फुरण शक्ति और जागृति उत्पन्न करता है। 8. ध्यान मुद्रा इस मुद्रा के दौरान जिस तरह की शारीरिक आकृति बनती है वह वीतराग अवस्था को द्योतित करती है इसलिए इसे वीतराग मुद्रा भी कह सकते हैं। वीतरागता से अभिप्राय राग-द्वेष, जन्म-मरण, सुख-दुःख आदि वैभाविक पर्यायों से सर्वथा विमुक्त आत्मा की अवस्था है। यह चेतना की शुद्ध अवस्था है। निरावरण ज्ञान द्वारा चेतन सत्ता का बोध होता है। राग-द्वेष जन्य परिणामों से निर्मल ज्ञान विकृत बनता है, विकृत ज्ञानावस्था में रही हुई आत्मा ही अशुभ कर्मों का बन्ध करती है। ध्यान मुद्रा से विकारजन्य दूषित अवस्था वीतराग अवस्था में परिवर्तित होती है। "जैसी मुद्रा वैसा भाव, जैसा भाव वैसी मुद्रा' इस सिद्धान्त के अनुसार ध्यान मुद्रा (वीतराग मुद्रा) में सुस्थिर होने से वीतराग
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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