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________________ आधुनिक चिकित्सा पद्धति में प्रचलित मुद्राओं का प्रासंगिक विवेचन ... 43 विधि सबसे पहले किसी भी सरल आसन अथवा पद्मासन में बैठें। फिर दाहिने हाथ से ज्ञान मुद्रा बनाकर उसे हृदय के दायीं ओर रखें तथा बायें हाथ से ज्ञान मुद्रा बनाकर एवं हथेली को आकाश की तरफ करते हुए उसे बायें घुटने पर रखा जाए तब पूर्णज्ञान मुद्रा बनती है। निर्देश - पूर्वोक्त किसी भी अनुकूल आसन में 15 से 30 मिनट नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए। सुपरिणाम • सामान्यतया यह मुद्रा पूर्णज्ञान की स्थिति तक पहुँचाती है। • मानसिक जगत में इससे काम वासना से सम्बन्धित कुविचारों पर नियंत्रण होता है तथा प्रेम एवं करुणा का संचार होता है। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से चिंता एवं तनाव से मुक्ति मिलती है। • शारीरिक जगत की अपेक्षा विचार करें तो यह मुद्रा आम जीवन में किसी भी प्रकार के नशे से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। नशाग्रस्त व्यक्ति को किंचित देर इस मुद्रा में बिठाया जाये तो वह शनै: शनै: नशीली प्रवृत्ति कम कर देगा और अन्ततः नशे का परित्याग भी कर सकता है। यदि व्यसनी नशा त्याग की इच्छा रखता हो किन्तु मनःशक्ति दुर्बल हो, तो उसे चमत्कारिक लाभ मिलता है। • बौद्धिक जगत की अपेक्षा यह मुद्रा मंद गति बालकों को नित्य करवानी चाहिए। इससे स्मरण शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होती है तथा किसी भी प्रकार के दूषित विचार मनोभाव से निष्कासित हो जाते हैं। • पर्यावरण जगत भी पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होता है। जिससे आस-पास के वातावरण में प्रेम, सौहार्द और शांति प्रसरित होती है। • आध्यात्मिक सन्दर्भ में इस मुद्राभ्यास से शरीर में विचित्र प्रकार की विद्युतीय तरंगों का आभास होता है जिसके द्वारा व्यक्ति को आत्म तत्त्व का ज्ञान एवं आत्मसुख की अनुभूति होती है, जिसे व्यक्त करना निःसन्देह एक दुष्कर कार्य है। भारतीय इतिहास साक्षी है कि इस मुद्रा के द्वारा अनेक महापुरुष साधना की चरम स्थिति को प्राप्त हुए हैं। • एक संशोधक के अनुसार इस मुद्राभ्यासी साधक का आभामण्डल
SR No.006258
Book TitleAdhunik Chikitsa Me Mudra Prayog Kyo Kab Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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